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पंजमपरिछेद.
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लहे,
॥ का० ॥ ३ ॥ कृपण काठियो सातमो, न गमे दाननी वातरे ॥ निवारोजी ॥ का० ॥ आठमो जयथी नवी सुणे, नरकादिक यवदात रे ॥ निवारोजी ॥ ४ ॥ नवमो ते शोक नामें कह्यो, शोकें बांडे धर्म रे ॥ निवारोजी ॥ का० ॥ दशमो अज्ञाने ते नवि धर्म धर्मनो मर्म रे ॥ निवारोजी ॥ का० ॥ ॥ ५ ॥ विकथा नामे अग्यारमो, लोक वातें धरे प्रीत रे ॥ निवारोजी ॥ क० ॥ कुतुहल काठियो बारमो, कौतुक जोवा धरे चित्त रे ॥ निवारोजी ॥ ॥ का० ॥ ६ ॥ विषय ते काठियो, तेरमो, नारि साथै धरे नेहरे ॥ निवारोजी ॥ का० ॥ ७ ॥ इति श्री तेर काठियानी सद्याय ॥
॥ अथ महोटी होंस न करवा श्राश्रयी सद्याय ॥ होशीमा जाई (प्राणि) होंश न कीजें महोटी वावी बे बंटी बाजरी, तो शाली केम लहियें मोटी रे ॥ हों ॥ प्राणी जेणें दीधुं तेणे लीधुं जे देशे तेलेशेरे ॥ जेणे नवि दीधुं तेणे नविलीधुं दीधा विना केम लेशे रे ॥ हों० ॥ १ ॥ वाव्या विना कर्षण केम ल हियें, सेव्या विना केम वरीयें ॥ पुण्य विना मनो रथ मोटा, दीघा विण केम करियें रे ॥ हो० ॥ ॥२॥ सी सानी अकोटी श्रापी, आपी तरुवानी त्रोटी ॥ ते सोनार कने केम मागीश, सोनानी करी मोटी रे ॥ हों० ॥ ३ ॥ शालिन धन्नो कयवन्नो, मूलदे
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