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जैनधर्मसिंधु. श्राकरो, श्णधी अवगुण थाये॥मे॥१०॥६॥ नाक बंधायें बोलतां, धाधुं वचन बोलाय ॥ मे ॥अमी सुकाये जीननु, एहने खाय बलाय ॥ मे ॥७॥ दाढीने मूगंदिशि, उगे नही अंकूर ॥ मे० ॥ काया काली मिश हुए, गाबमी गाले नूर ॥ मे ॥१०॥ ॥७॥ पलक अवेरुं जो लीए, तो पातम अकुलाय ॥ मे ॥ नाक चूए नयणां ऊरे, काम करीन शका य ॥ मे ॥ १०॥ ए॥ अधबिच मारगमां पडे, जीवन मृत्यु समान ॥ मे ॥ हाथ पगोनी नस ग ले, अमली श्रावी शान ॥ मे ॥ १०॥ १०॥ श्रा गरा बाबो कह्यो, मालवी मांडे नेल ॥ मे ॥ थापदणुं सखरं नही, मिशरी\ मन मेल ॥ मे ॥ अ॥ ११॥ नवटांक जे नर जीरवे, तसु थहि वि ष न जणाय ॥ मे ॥ अमल घणुं खाधाथकी, कंद 4 बल मिट जाय ॥ मे ॥१०॥ १२॥ अमलीने उन्हें रुचे, टाटु नावे दाय ॥ मे० ॥ खोनी रोटी खांमधी, उपर दूध सुहाय ॥ मे ॥ १० ॥ १३॥ कुलवंती जे कामनी, जाणे जुगति सुजाण ॥ मे ॥ कांति विखी क्षण करी, श्रमलीने दीए श्राण ॥ ॥ मे० ॥ १४ ॥प्रीतम आशा पूरती, न करे रीश लगार ॥ मे ॥ कथन न लोपे कंथन, ते विरली संसार ॥ मे ॥ अ०॥ १५॥ पुर्जागणी नारी जी का, बोले कर्कश वाण ॥ मे ॥ रे रे अधम अफी