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जैनधर्मसिंधु धुजन सीदा यशे, उर्जन बहुला मोल रे ॥वी॥॥ राजा प्रजाने पीमशे, हिंडशे निरधन लोक रे॥ माग्या न वरसशे मेहुला, मिथ्यात्व होशे बहु थो क रे ॥ वी० ॥ ॥ संवत् योगणीश चौदोत्तरें, हो शे कलंकी राय रे ॥ माता ब्राह्मणी जाणीयें, बाप चंमाल कहेवाय रे ॥ वी० ॥ ए ॥ व्यासी वरषनु थाउखु, पामलीपुरमा होशे रे, तसु सुत दत्त नामें जलो, श्रावककुल शुज होषे रे ॥ वी १०॥ कौतुकी दाम चलावशे, चर्म तणा ते जोय रे ॥ चोथ लेशे निक्षा तणी, महा आकरा कर होय रे ॥ वी० ॥ ॥ ११ ॥ अवधियें जोयतां, देखशे एह स्वरुप रे ॥ हिजरुपें आवी करी, हणशे कलंकी नूप रे ॥ ॥ १५ ॥ दत्तने राज्य थापी करी, इंऽ सुर लोकें ज य रे ॥ दत्त धरम पाले सदा, नेटशे शेत्रंज गिरि राय रे ॥ वी० ॥ १३ ॥ पृथ्वी जीन मंडित करी पामशे सुख अपार रे ॥ देव लोकें सुख जोगवे, नामे जयजयकार रे ॥ वी० ॥ १४ ॥ पांचमा श्राराने बेमु ले, चतुर्विध श्रीसंघ होशे रे ॥ बहो आरो बेसतां, जीनधर्म पहिलो जाशे रे ॥ वीर ॥ १५ ॥ बीजे अगनी जायशे, त्रीजे राय न कोय रे ॥ चोथे पोहरे लोपना, बड़े थारे ते होय रे ॥ १६ ॥ दोहा ॥ है आरे मानवी, बिलवासी सवि होय ॥ वीश वरसनुं आउखं, षटवर्षेगर्जज होय ॥ १७ ॥ सहस चोराशी