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पंचमपरिच्छेद.
३५ ॥ अथ श्री बाहुबलजीनी सद्याय ॥ ॥ बहेनी बोले हो बाहुबल सांजलो जी ॥ रूडा रूमा रंगनिधान ॥ गयवर चढिया हो, केवल केम हुवे जी ॥ जाण्युं जाएयुं पुरुष प्रधान ॥ ब० ॥१॥ तुज सम उपशम जगमा कुण गणेजी, अकल निरं जन देव ॥ नाश नरतेसर वादाला विनवे जी, तुऊ करे सुर नर सेव ॥ ब० ॥२॥ नर वरसालो हो वनमां वेठी जी, जिहां घणां पाणीनां पूर ॥ ऊर मर वरसे हो, मेहुलो घणुं जी, प्रगट्या पुण्य अंकूर ॥ ब० ॥३॥ चिहुं दिशि वीट्यो हो वेलमीये घj जी, जेम वादल बायो सूर ॥ श्री आदिनाथे हो, श्रमने मोकल्यां जी ॥ तुम प्रतिबोधन नूर ॥ ब०॥ ॥४॥ वर संवेगरसे हो, मुनि नख्या जी ॥ पाम्यु पाम्युं केवल नाण ॥ माणकमुनि जस नामे हो, हरख्यो घणुं जी ॥ दिन दिन चढते रे, वान ॥ बन ॥५॥ इति सद्याय ॥
॥अथ श्री ढंढण ऋषिजीनी सद्याय ॥ ॥ ढंढण ऋषिजीने वंदण। ॥ ९ वारी लाल ॥ उ स्कृष्टो अणगार रे ॥ हुँ वारी लाल ॥ अनिग्रह लीधो आकरो ॥ हुँ वारी० ॥ लब्धे लेशुं श्राहार रे ॥ हुँ वारी लाल ढं० ॥१॥ दिन प्रति जावे गोचरी ॥ हुं ॥ न मले शुक आहार रे हुं ॥ न लीये मू ल असूऊतो ॥ ९ ॥ पीजर हुवो गात रे ॥ ९॥