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जैनधर्मसिंधु. युं ॥ एक तलाव फोमंतां तेटवू, दूषण सुगुरु बतायु रे ॥प्रा०॥ ६ ॥ एकलोत्तर नव सर फोड्या सम, एक दव देतां पाप ॥ अग्लोत्तर जव दव दीधा जिम, एक कुवणिज संताप रे ॥ प्रा० ॥७॥ ॥ एक शो ने चुम्मालीश जव लगें, कुवणिजना जे दोष ॥ कूडं एक कलंक दियंतां, तेहवो पापनो पोष रे ॥ प्राण ॥ ॥ एक शो एकावन जव लगें दीधां, कूमां कलंक अपार ॥ एक वार शील खंड्या जेवो, अनर्थनो विस्तार रे ॥प्राण ॥ ए॥ एकशो नवाएं जव लगें खंड्यां, शीयल विषय संबंध ॥ एके रात्रि जोजनें तेहवो, कर्म निकाचित बंध रे ॥ प्रा० ॥ ॥ १० ॥ रात्रिनोजनमां दोष घणा बे, श्यो कहिये विस्तार ॥ केवली केहतां पार न पावे, पूरव कोडी मकार रे ॥ प्रा० ॥ ११॥ रातें नित्य चो विहार क रीने, शुज परिणाम धरीजें ॥ मासे मासे पासखम पनो, लाज श्णे विध लीजें रे ॥ प्राण ॥१५॥ मुनि वसतानी एह शिखामण, जे पाले नर नारी॥सुर नर सुख विलसीने होवे, मोद तणा अधिकारी रे ॥प्रा० ॥ १३ ॥ इति रात्रिनोजननी सद्याय ॥ ॥ अथ जोबन अस्थिरनी सद्याय ॥
॥राग प्रजाति ॥ जोबनीयानी मोजां फोजां, जाय नगारां देती रे ॥ घरि घरि घमियाला वाजे, तोय न जागे तेथी