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जैनधर्मसिंधु.
थुणतां पामो अक्षय ज्ञान ॥ बालमित्रकी अरजी suatr. प्रभुको शरण प्रधांनरे ॥ प्रभु नेमकुमरजी ७
पद.
किसविध किये कर्म चकचूर ॥ उतम क्षमापे चंनो मने यावे ॥ क ॥ एक तो प्रभु तुम परम दयालु रोसन तिलतुष मात्र हजूर ॥ डुजे जीव दयाके सागर ॥ तीजे संतोषी नरपुर | उ ॥ १ ॥ चोथे प्रभुतुमही तउपदेश ॥ तारन तरन जगत मसहुर ॥ कोमल वचन सरन सत वक्ता ॥ निर्लोभी संजम तपसूर ॥२॥ केसे मोह मलतुमजीत्यो ॥ अंतराय के से कियो निरमूल || केसेज्ञाना वरण निवार्यो | केसे कियेचा रोघातिया दूर ॥ ३ ॥ त्यागी वैरागी हो तुमसाहेब ॥ यकिं चनव्रत धारकर ॥ सुरनर मुनी सेवेचर्नतुमारे तोजीनहि प्रभुजी केगरुर ॥ ४ ॥ करत यासारदास नसुख ॥ दीजेाब मोहेदान जरुर ॥ जन्मजन्म पद पंकज सेतुं ॥ योरन कबु चित चाहेहजूर ॥ ५ ॥
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॥ इति चतुर्थ परिछेदः समाप्तः ॥