________________
३६६
जैनधर्मसिंधु. घननननन घननननन, घंटा सुघोखा बाजे एटेक॥ ॥गान तान नाच रंग॥इंघासन थाय ॥ धन्य धन्य श्राजको दिवस, प्रजुजीको दरिसन पाय ॥६॥१॥ वीर काया लघु देखी ॥ इंछ मन अकलाय ॥ अवधि देखी वीर मेरु अंगुके दबाय ॥२॥६॥ जन्म महोत्सव जिनको करी, इंछ देव लोक जाय ॥ दास नर प्रनु तणा, हरसेन गुन गाय ॥३॥ ॥ इति
॥राग सोरठ॥ ॥ कहुँ कहांलोंवारुं नणदलवीर ॥ क० ॥ मिथ्या गणकि पूंजीषा, बनगए जनम फकीर ॥ क० ॥१॥ गश्य गई सो नलीय रहीसो, धर धर मनको धीर॥ कहांलों धीर धरूं धीरज धर,विरह जनमवहीर॥ कण ॥॥ जाललाल बिंदी नही जावै,आजुषण नही वीर ॥ ग्यानसार वालो आय मिलै घर,तोन रहै कोई पीर॥
॥राग पुनः॥ ॥ होजी आली जानै मानै थारी चाहि घणी, वहिला वेग पधारो ॥ हो ॥ आयुकरम बिन सातुं कि स्थिति, कोमम सागर इककोम गुणी ॥ हो ॥ १॥ के ते दिन चिंतवतां अबकै, ज्युं त्युं प्रीतवणी जै ॥ ५ ॥ जलो बुरो तोही चलि आयो, अंत तो घरको धणी बै, ग्यानसार कहै ढीलन कीजै, प्रीत अंतरको नणी ॥ हो ॥३॥ इति पदम् ॥