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________________ _. . ३६४ जैनधर्मसिंधु. त दोयकुंमलसोहे ॥ ॥ गले बिच मोतियन मालपनी ॥३॥ अ॥ हरखचंद के तुम चरण न बोडुं पल एक घरी श्र ॥ इति ॥ ॥पद ॥ जिन राज नाम तेरा हो रारे हमारा घटमे ॥ टेक ॥ जाके प्रनाव मेरा॥अज्ञानका अंधेरा ॥ ना गा जया उजेरा ॥१॥रा ॥ सुरत तेरी रागें ॥ देख्या विजाव त्यागे॥ अध्यात्म रूप जागे ॥२॥ रा॥ मुखा प्रमोद कारी ॥ षनेस ज्युं तिहारी ॥ लागत मोहे प्यारी ॥३॥ रा ॥ त्रैलोकनाथ तुमही ॥ ह. महें अनाथ गुनही ॥ करियें सनाथ अबहि ॥४॥ रा ॥ प्रजुजी तिहारी सांखे ॥ जिन हर्ष सुरी ना. षे॥ दिल माहिं येहिं राखेहो ॥५॥ इति ॥ तु बरवा. अबतो उधार्यो मोहे चहिये ॥ जिनंदराय, राखं जरोंसो मे प्रजुके चरणको ॥ एटेक ॥सुनो श्रीश्रेयां सनाथ ॥ साचो शिव पुर साथ ॥बिरुद तुमारो प्रन्नु तारन तरनको ॥ १॥ ॥ सिंह पुरी जन्म ठगम ॥ पिता विष्णुसेन नाम ॥ विष्णुराणी कुंखें जायो॥ कंचन वरनको ॥२॥ अ॥ वरस चोरासी लाख ॥ आयुष्य परम नांख ॥ लंडन चरन खग सुखके करनको ॥३॥थ ॥ हुँतोढुं अनाथ तुम नाथनके नाथ प्रजु ॥ तुमविना और मेरे उसरो सरनको
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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