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जैनधर्मसिंधु.
शलाख पुरवनु श्रायु, दिनकरथी तेज सवायुंजी, बो स्वस्तिकलंबन धरनारा, मुज स्वामी मोहनगारा ॥ ४ ॥ प्रभु तुम दरशन मनजावे, मुनिमनसुख तुम गुणगावेजी ॥ बोबाल मित्रना प्यारा ॥ मुज स्वामी मोहन गारा ॥ ५ ॥
श्रीचन्द्रप्रभुजीनुं स्तवन ॥ राग माढ - मेवाडो मली - ए राह ॥ चंद प्रभु चित चोरी लीधुं, देखाडी दीदार ॥ मन मोहाव्युं मांहरु. मने देखामी दीदार ॥ चन्द्रपूरी न यरी विषे, महासेन राजान ॥ लक्ष्मणा माता उदरे, प्रभु याव्या पुरुष प्रधानरे म० ॥ १ ॥ लंबन शोने चन्द्रनुं कांई गुण अनन्त प्रधान ॥ दर्शन करतां आपजो, कांई शिवरमणीनुं दानरे म० ॥ २ ॥ नयणा कमल कचौलडा कांई, नाशा शुक समसार ॥ सम्य क्त दृष्टि जीवने प्रभु, ताहरो बे आधाररे ॥ म ० ॥ ३ ॥ चि तमां लागी चटपटी प्रभु, लटपट मन बोजाय ॥ खट पट शिव वधुने माटे, श्रावे है मुजदायरे ॥ म० ॥ ४ ॥ एकला आप वरीने बेठा, करीये सेवक सार ॥ बाल मित्र शुभ वन्दन करतां, विनवे वारंवाररे म० ॥२॥ श्री सुविधिनाथ स्तवन ॥
बेधर सुधारस पान चतुर नर प्रेम थकी करीये॥ ए राह ॥
नवरंगी यांगी आज दीलमां धरीये, रस अमृ