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चतुर्थपरिजेद.
३१७ चैतावरकी चाल श्राजकी रेण सोहानि, देखो श्राजकी रतियां ॥ श्रा० ॥ पारस प्रजुजीको जनम नयो है, हरष नई देवा हरष नई वामा राणी ॥ देखो० १॥ अश्वसेन घर वटत बधाई, घर २ अरी देवा घर २ मङ्गल मांनी ॥ दे० प्रा०२॥छार २ सब तोरण थंन है, चोखे मुख सेज सेगनी ॥ दे० प्रा०३ ॥ रतन थाल मुगताफल जरके, चोक पुरे इन्जानी ॥ दे० आ०४॥ सुमन अधमको निज पद दीजे, सुध समकित सहनानी ॥ देखो० श्रा० ॥५॥ इति
॥ जैरवीका पूहा ॥ प्रजुको नाम अमोल है, जामे लगत न मोल। नफा वहोत तोटा नही, जर नरके मन तोल ॥ ए जीब नूला फीरत है, ममताके कबोल । अश्वसेनके लाडले, श्रीपारस मुख बोल ॥
रागिणी जैरवी-ताल यत् । बलिहारीमरु देवी नन्दकी, नज नानिके नन्दन अवध बिहारी ॥ बलि १॥ तिन लोक तिन पावन कीन्हें, आनन्द लहर सुनन्दकी ॥ बलि ॥ कोशलपूर निकट सरजु तट, पूरण कला सो चन्दकी॥ बलि०३ ॥ दास तुमारो करत विनति, जयजय रूषन जिनन्दकी ॥ बलिण ४ ॥ इति ॥