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चतुर्थपरिजेद. ३१ ध ॥ जयो॥ थाईश जिनवर बारमो ए, जावि चो वीशियें लाध ॥ जयो ॥६॥ कलश ॥ श्य नेमि जिनवर, नित्य पुरंदर, रेवताचल, मंडणो ॥ बाण नंदमुनि, चंद वरसे राजनगरें, संथुण्यो ॥ संवेग रंग, तरंग जलनिधि, सत्यविजय, गुरु, अनुसरी ॥ कपूर विजय कवि, दमा विजय गणि, जिन विजय जय, सिरि वरी॥१॥ .
॥अथ श्री श्राराधनानुं स्तवन प्रारंज ॥ __॥ दोहा ॥ सकल सिद्धिदायक सदा, चोवीशे जिनराय ॥ सहगुरु सामिनी सरसती, प्रेमें प्रणमुं पाय ॥१॥ त्रिजुवनपति त्रिशला तणो, नंदन गुण गंजीर ॥ शासन नायक जग जयो, वर्षमान वमवी र ॥२॥ एक दिन वीर जिणंदने, चरणे करि परणाम ॥ नविक जीवना हित जणी, पूजे गौतम खा मि॥३॥ मुक्तिमार्ग श्राराधियें, कहो किण परें श्र रिहंत ॥ सुधां सरस तव वचन रस, नांखे श्री नग वंत ॥४॥ अतिचार बालोश्ये, व्रत धरी गुरु शा ख ॥ जीव खमावो सयल जे, योनि चोराशी लाख ॥५॥ विधियुं वली वोसिरावियें, पाप स्थान अढा र ॥ चार शरण नित्य अनुसरो, निंदो कुरित आचार ॥ ६॥ शुजकरणी अनुमोदियें, नाव नलो मन आण ॥ अणसण अवसर आदरी, नवपद जपो सुजाण ॥७॥ शुन्जगति आराधन तणा, एडे दश .