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जैनधर्मसिंधु.
पति श्रेष्ठी शूर विख्यात, शीयल सलीला का मिनी ॥ १० ॥ नरपति पुत्रादिक परिवार, सार भूषण ची वर धरी ॥ नरपति जाये नित्य जिनगेह, नमन स्तवन पूजा करे ॥ ११ ॥ नरपति पोषे पात्र सुपात्र, सामायिक पोष वरे ॥ नरपति देववंदन आवश्य क, काल वेलायें अनुसरे ॥ १२ ॥ इति ॥
॥ ढाल बीजी ॥ एकदिन प्रणमी पाय, सुव्रत सा धुतारी ॥ विनयें विनवे शेठ, मुनिवर करी करुणा री ॥ १ ॥ दाखो मुऊ दिन एक, थोमो पुण्य कीयो री ॥ वाधे जिम वम बीज, शुभ अनुबंधी थ यो री ॥ २ ॥ मुनि जासे महाजाग्य, पावन पर्व घणां री ॥ एकादशी सुविशेष, तेहमां सुण सुमना री ॥ ३ ॥ सित एकादशी सेव, मास इग्यार लगें री ॥ अथवा वरस इग्यार, उजवी तपशुं वगे री ॥ ४ ॥ सांजलि सद्गुरु वेण, आनंद श्रति उल्लस्यो री ॥ तप सेवी उजविय, आरण स्वर्ग वस्यो री ॥ ५ ॥ एक विश सागर याय, पाली पुण्य वसें री ॥ सांजल केशवराय, श्रागल जेद यशे री ॥ ६ ॥ सोरीपुरमां शेठ, समुद्रदत्त वडो री ॥ प्रीतिमति प्रिया तास, पुण्यें जोग जड्यो री ॥ ७ ॥ तस कूंखें अवतार, सू चित शुभ स्वपनें री ॥ जनम्यो पुत्र पवित्र, उत्तम ग्रह शुकने री ॥ ८ ॥ नाल निक्षेप निधान, भूमिथी प्रगट हवो री ॥ गर्जदोहद अनुजाव, सुव्रत नाम