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जैनधर्मसिंधु..... द्यम बेग न रहे परं धन उपार्जनका उपाय करे क्यो की उद्यम विना नसीब कनी फल देता नही हे. कूमा तोल, कूडा माप, कूमालेख प्रमुख अनर्थ कार्योको त्याग करके शुद्ध व्यवहारसे व्यापारमे स दा प्रवर्ते. अंगारकर्म, वनकर्म, शकटकर्म, नाटक कर्म, स्फोटककर्म, दंतवाणिज्य, लादावाणिज्य, रस वाणिज्य, केशवाणिज्य, विषवाणिज्य, यंत्रपीमन, नि लाडन, (बेलके कर्ण नाक अंड नख रोम बेदना) असतीजन पोष (कुत्ते बिब्बे तोते प्रमुख जानवरोसे आजीविका करनी) दवदान (दव लगाना) सर ह तलाव शोषण करना. यह पंदरे कर्मादानका व्या पार श्रावक न करे. ___ लोखंड, महुडाके पुष्प, मदिरा, सेहेत (मधु) कंद, मूल, पान, फल, प्रमुख वस्तुका आजीविका निमित्त श्रावक व्यापार न करे.
उष्ण कालमें बहुत जीव विराधना होनेके जय से विचक्षण श्रावक फाल्गुण माससे उपरांत तिल, गुड, टोपरा, प्रादा प्रमुख मेवा प्रमुखका व्या पार न करे. ___ चातुर्मासमें श्रावक गामीमे घोडे बेलोंकों जोने नही. बहुत आरंज प्रवर्तक कृषि कर्म श्रावक करे करावे नही. योग्य मोल मिलता होय तो लेण देण करना. बहु