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जैनधर्मसिंधुः अजीर्ण हुवा होय तहां तक नोजन नही कर. ना. पूर्ण कुधाकालमे अपने को रूचे सो नोजन क रना. नोजन किये पीछे मुख शुकि जल सुपारी तां बूंलादिकसे करनी..
विवेकी जन रस्ते में चलते तांबूल न खाय. सुपारी प्रमुख श्रदत फल दांतोंसें जांगना नही. क्यों की उससे जीव घात होत
जोजन कीये पीछे उष्णकाल सिवाय सोना नही क्यों की सोनेसे शरीरमें व्याधिका संभव होता हे. इति दिनचयााँ हितीयः वर्गः समाप्तः
॥अथ तृतीय वर्ग प्रारंजः ॥ जोजन किये पीछे अपने घरकी शोजा देखता, विचरणोंसे वार्तालाप करता, पुत्रादिकोंकों शिखा वन देता थका सुखसे दो घडी वार विवेकी जन अ पने घरमें ठहरे. ___ गुणकी प्राप्तिकरनी यह अपने स्वाधीन हे. ध. नादिकका सुख दैवाधीन हे. एसे तत्ववेत्तोओंको कन्नी गुणकी हानी नहि होती हे.
कुल हीन पुरुषनी अपने गुणसें उच्च दशाको प्राप्त कर शक्ताहे देखिये किचम्सें उत्पन्न होने वाला पंकज (कमल) कों सब अपने शिरपर धारण करतेंहे और पंक (कादा किचम) पेरसें घिसा जाता हे.