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२५० जैनधर्मसिंधु. . नी नही. नगवंतके वामांगमें धूप रखना. जल पात्र सन्मुख रखना. पान अथवा फल हस्तमे रखना. उपरोक्त अष्ट प्रकारी पूजा हररोज करनी और नीचे लिखि एक वीस प्रकारी को पर्व तिथीमे अथवा तीर्थ स्थानोंपर अवश्य करनी
एकीस प्रकारी पूजाके नाम. स्नात्र, चंदन, दीप, धूप, पुष्प, नैवेद्य, जल, ध्वजा, वासदेप, अक्षत, सुपारी, तांबुल, जंमारधि, फल, वाजित्र, गीत, नाटक, स्तुति, नत्र, चामर, आन्नूषण.
विशेष लानार्थी श्रावक शुध्ध वस्त्रसे सुशोजित होके अशुचि मार्गको बोडके अच्छे मार्गसे ग्रामचैत्य (पंचायतीमंदिर ) दर्शनके लिए जाय.
पूजाका फल विषे. मंदिरमे दर्शनके लिए जाऊंगा एसा विचार करनेसे एक उपवासका, जानेकों उठेतो दो उपवासका, मंदिरके मार्गमे चलेतो तीन उपवासका, मंदिरको देखनेसे चार उपवासका, मंदिरके दरवळेपर श्रानेसे बउपवासका, मंदिरके अंदर जाके दर्शन कर. नेसे पंदरे उपवासका, जिन पूजा करनेसे एक मासके उपवासका फल मीले. तीन वार “निःसीही" शब्दकों उच्चारके मंदिरमें प्रवेश करना. मंदिरकी प्रथम सारसंजाल (देखरेख )करके पी पूजा करना.