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जैनधर्मसिंधु. जंबीर पूग सहकार मुखैः फलैस्तैः । खर्गाद्यनटप फलदं प्रमदा प्रमोद, देवाधिदेव मधुना प्रशमं महामि ॥ नीचे लिखित काव्य बोलके नैवेद्य चढावे.
सन्मोदकै वंटक मंगक शालि दालि, मुख्य रसंख्यरस शालिनि रन्नजोज्यैः । कुत्रव्यथाविरहितं स्वहिताय नित्यं, तीर्थाधिराज महमादरतो यजामि ॥ नीचे लिखा काव्य बोलके दीपक चढावे. विध्वस्त पाप पटलस्य सदोदितस्य, विश्वावलोकन कला कलितस्य जक्त्या। उद्योतयामि पुरतो जिननायकस्य,
दीपंतमः प्रशमनाय शमांबुराशेः॥ नीचे लिखित काव्य बोलके जल चढावे.
तीर्थोदकै धुतमलै रमलस्वजावं, शश्वनदी हृदसरोवर सागरोजैः। उर्वार मार मद मोह महाहितार्य,
संसार ताप शमनं जिनमर्चयामि ॥ नीचे लिखित काव्य बोलके हाथ जोड नमस्कार करे.
पूजाष्टक स्तुति मिमा मसमा मधीत्य, योनेन चार विधिना वितनोति पूजां । जुत्का नरामरसुखान्य विखंमितानि, धन्यः सुवास मचिराबनते शिवेपि ॥