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तृतीयपरिबेद. २४७ वैराग थाना ए सब सुननेसे प्राप्त होतेंहे. श्राचार्य
और साधुओंकों पंचांग नमस्कार करके याशातना त्याग करके गुरुके सन्मुख बेठना. दों ढीचण, और दो हाथ लगाया हुवा मस्तक, धरतीपर टिकायके नमस्कार करनेको पंचांग नमस्कार कहतेंहें. ___ पलांची बांधके, लंबे पग पसारके, पग उपर पग चढाके, दो कांख दिखाते, अगामी, पीबाडी, बरोबर दोनुं तर्फ, गुरुके पास बेठना नहीं. अपनेंसे पूर्व आए हुवेकी बातें पूर्ण हुवे विना गुरुको बुलाना नही. श्राशयका समजदार गुरुके मुख सामने दृष्टि रखकर चित्तकी एकाग्रतासें धर्म शास्त्र सुने. वाख्यान पूर्ण हुवे पी अपनी शंकाका समाधान करे (पु) और देव गुरुके गुण गाने वाले (नाट जोजक ) को यथोचित दान देवे. जिस्ने प्रातः प्रतिक्रमण न किया होय सो वांदणा देके गुरुको वांदे। धर्मप्रिय श्रावक नवकारसहीत प्रमुख यथाशक्ती पच्चरकाण करे. दान देनेवालेनी जोबत पञ्चरकाण न करेतो तिर्यंच योनीमें उ त्पन्न होते. हाथी घोडा प्रमुखमे उत्पन्न हो केली बंधनमें पमतेंहे. जो दाताहे सो नरकमें न जाय. जो व्रत पञ्चरकाण करता हे सो तिर्यंच न होय. जो दयावंत होय सो हीन आयुष्य न होय. सत्यवादी होय सो उखर (उष्ट अवाजबाला)