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जैनधर्मसिंधु चढाना. अथवा सुवर्ण हार बनाकै कंहारोपित करना । ज्ञाननक्ति गुरुनक्ति संघनक्ति करना.
॥ अहव दशमी तप ॥ प्रत्येक वर्षकी नाजवा सुद दशमीके दिन यथा शक्ति उपवासादि तप करके अंबिकादेवी के पास संगीतादिक करके रात्रि जागरण करना. मोदक फल पुष्पादिक ढोकना. धूप दीपादिक करना. अगले दिन स्वामी वत्सलकरके मुनिको दान देके पारणा करना. रेशमी चुनमी च. ढानी. एसे दशवर्ष करना. दूसरे वर्ष फलादिक छगुने चढाने. तीसरे वर्ष तीगुने चोथेवर्ष चोगुने च ढाने. ज्ञान गुरु संघनक्ति करना
॥ लघु संसार तारण तप ॥ निरंतर तीन आयं बिल करके एक उपवास करणा. सिझपद गुणना. एसे तीन उली करते बारे दिनसे तप पुराहोय.
॥ वृक्षसंसार तारण तप ॥ निरंतर तीन उपवा स ( तेला) करके एक आयंबिल करना. सिझपद गुणना. एसी तीन उली करनी. इस्मे नव उपवास तीन आयंबिलसे तप पूरा होय. उद्यापनमे चांदी का जाहाज बनाके एक थालीमे उधनरके सुधमे जहाज तिरानां. जहाजमे मोतिमुंगा रखना. वा मीवबल ज्ञानगुरु नक्ति करना. पूजा पढाना ॥
लाखी पमवा तप ॥ कार्तिक सुदि प्रतिपदाके दिन गौतमखामीके नामका उपवास करना. गौतम स्वामी