________________
द्वितीयपरिजेद.
२०१ २३ मनोगुप्ति युक्ताय श्रीसा। २४ वचनगुप्ति युक्ताय श्रीसा । २५ कायगुप्ति युक्ताय श्रीसा। २६ सीतादि छाविंशति परीसहसहण तत्पराय। २७ मरणांत उपसर्ग सहण तत्पराय श्रीसा ।
॥ इति सप्तविंशति साधु गुणाः ॥५॥ इस रीतसे सतावीस नमस्कार करै । (खडा हो के अन्नडू स (इत्यादि कहिके) सातवीस लोग स्सकाकाउस्सग्ग करै । पारके एक लोगस्स कहके (पी) पूर्वोक्तकरणी करै । ( यह पंच परमेष्टि पदके सब गुण मिलाणें सें (१७) होय ( इसीसें) मालाके दाणे (१०७) होते है । इति पंचम दिवस विधिः॥
॥अथ षष्ट दिवस विधिलि ॥ ॥ ( ही नमो दसणस्स) इस पदको (२) हजार गुणनो करै । दर्शनपद सपेदवर्णहे (इससे) तंकुलका बिल करै । सम्यक्तके समसतिगुण चिंतवके नमस्कार करै ॥
॥अथ सम्यक्तके समसवि नेदलि॥ १ परमार्थ संस्तवरूप श्री सदर्शनाय नमः। २ परमार्थ ज्ञातृसेवनरूप सद्दर्शनाय नमः । ३ व्यापन्नदर्शन वर्जनरूप सदर्शनाय नमः। ४ कुदर्शन वर्जनरूप सद्दर्शनाय नमः।