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द्वितीयपरिद.
१७ पद वरिया सबे, सादि अनंत निवास ॥ करीये शु न चित्त वंदना, जब लग घटमां शास ॥६॥इति ॥
॥अथ श्रीपंच परमेष्ठि चैत्यवंदन ॥ ॥ बार गुण अरिहंत देव, प्रणमीजें जावें ॥ सिक श्राउ गुण समरतां, पुःख दोहग जावे ॥१॥
आचारज गुण बत्रीस, पंचवीश जवजाय ॥ सत्ता वीश गुण साधुना, जपतां सुख थाय ॥२॥ अष्टो त्तर सय गुण मली ए, एम समरो नवकार ॥ धीर विमल पंडित तणो, नय प्रणमे नित सार ॥३॥ति॥
॥अथ श्री सीमंधर जिन थोय ॥ ॥श्री सीमंधर जिनवर, सुखकर साहेब देव ॥ अरिहंत सकलनी, नाव धरी करूं सेव ॥ सकल श्रागम पारग, गणधर नाखित वाणी ॥ जयवंती आणा, ज्ञान विमल गुणखाणी ॥१॥ (ए थोय चार वखत पण कहेवाय )
॥अथ श्री सीमंधर जिन थोय ॥ ॥श्री सीमंधर देव सुहंकर, मुनि मन पंकज हं साजी ॥ कुंथु थर जिन अंतर जनम्या तिहुश्रण जश परशंसा जी ॥ सुव्रत नमि अंतर वरदीक्षा, शिक्षा जगत निरासेंजी ॥ उदय पेढाल जिनांतर मां प्रजु, जाशे शिव वहु पासेंजी ॥१॥ बत्रीश च उसही चउसही मलिया, श्ग सय सहि उकिहा जी॥चन अम श्रम मनी मध्यम कालें, विश जि