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प्रथमपरिच्छेद.
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राधे || जिन उत्तमपद पद्मने, नमी निज का रज साधे ॥ ५ ॥
॥ अथ श्री रोहिणी तपचैत्यवंदन ॥
॥ रोहिणी तप आराधीये, श्रीश्री वासुपूज्य ॥ दुख दोहग दूरें टले, पूजक होये पूज्य ॥ १ ॥ पदे ला कीजें वासदेप, प्रह उठीने प्रेम ॥ मध्यान्हें क री धोतीयां, मन वच काया खेम ॥ २ ॥ अष्ट प्रका रनी रचीयें, पूजा नृत्य वाजित्र ॥ जावें जावना जा वीयें, कीजें जन्म पवित्र ॥ ३ ॥ त्रिहुं कालें लेइ धूप दीप, प्रभु यागल कीजें ॥ जिनवर केरी नक्तिशुं, श्रविचल सुख लीजें ॥ ४ ॥ जिनवर पूजा जिन स्त वन, जिननो कीजे जाप ॥ जिनवर पढ़ने ध्याइये, जिम नावे संताप ॥ ५॥ कोड कोड गुण फल दीयें, उत्तर उत्तर जेद ॥ मान कहे ए विधि करो, ज्युं दोये जवनो बेद ॥ ६ ॥
॥ अथ तीर्थवंदननुं चैत्यवंदन ॥
॥ सीमंधर प्रमुख नमुं, विहरमान जिन वीश ॥ रिखजादिक वली वंदीयें, संपइ जिन चोवीश ॥१॥ सिद्धाचल गिरनार आबु, अष्टापद वलि सार ॥ स मेत शिखर ए पंचतीर्थ, पंचमी गति दातार ॥ २ ॥ ऊर्ध्व लोके जिनदर नमुं, ते चोराशी लाख ॥ सह स सत्ताएं ऊपरें, त्रेविश जिनवर जांख ॥ ३ ॥ एक शो बावन कोमि वली, लाख चोराएं सार ॥ सदस