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द्वितीयपरिच्छेद .
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आषाढ शुदि श्रावमे, अष्टमी गति पामी ॥ ५ ॥ श्रावण वदनी श्रावमे, नमि जन्म्या जगना ॥ तिम श्रावण शुदि आठमे, पासजीनुं निर्वाण ॥ ६ ॥ जावा वदि श्राम दिने, चविया स्वामी सुपास ॥ जिन उत्तम पदपद्मनें, सेव्यायी शिववास ॥ ७ ॥ ॥ इति ॥
॥ अथ एकादशीनुं चैत्यवंदन ॥
॥ शासन नायक वीरजी, प्रभु केवल पायो ॥ संघ चतुर्विध थापवा, महसेनवन आयो ॥ १ ॥ मा धव सीत एकादशी, सोमल द्वीज यज्ञ ॥ इंद्रभू तियादें मख्या, एकादश विज्ञ ॥ २ ॥ एकादशसें चगुणा, तेनो परिवार || वेद अर्थ अवलो करे, मन अजिमान अपार ॥ ३ ॥ जीवादिक संशय हरी ए, एकादश गणधार ॥ वीरें थाप्या वंदीयें, जिन शासन जयकार ॥ ४ ॥ मलि जन्म र मलि पास, वरचरण विलासी ॥ रुषन श्रजित सुमति न मि, मलि घनघाति विनाशी ॥ ५ ॥ पद्मन शिव वास पास, जवजवना तोडी || एकादशी दिन था पणी, रुद्धि सघली जोडी ॥ ६ ॥ दश खेत्रें त्रिहुं कालनां, त्रणशें कल्याण || वरस अग्यार एकादशी,
राधो वर ना ॥ ७ ॥ अगीयार अंग लखावीयें, एकादश पाठां ॥ पूंजणी ठवणी विंटणी, मशी का गल काठां ॥ ८ ॥ गीयार व्रत बांवां ए, वहो