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द्वितीयपरिवेद. राजीयो नामें देव सुपास ॥ रिखल कहे जिन सम रतों, पहोंचे मननी श्राश ॥५॥ इति ॥ ७ ॥
॥अथ बीजनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ऽविध धर्म जिणें उपदिश्यो, चोथा अभिनंदन ॥ बीजे जन्म्या ते प्रजु, नवपुःख निकंदन ॥१॥ मुविध ध्यान तुम्हें परिहरो, श्रादरो दोय ध्यान ॥ एम प्रकाश्युं सुमति जिनें, तेचविया बीज दिन॥२॥ दोय बंधन राग द्वेष,तेहनें नवि तजीयें ॥ मुजपरें शीतल जिन कहे, बीज दिन शिव नजीयें ॥३॥ जीवाजीव पदार्थनं, करो नाण सुजाण ॥ बीज दि. में वासु पूज्य परें, लहो केवल नाण ॥ ५ ॥ निश्चय नय व्यवहार दोय, एकांत न ग्रहीयें ॥ अर जिन बीज दिने चवी, एम जिन पागल कहीयें ॥५॥ वर्तमान चोवीशीयें, एम जिन कल्याण ॥ बीज दिने के पामीया, प्रज्जु नाण निर्वाण ॥६॥ एम अनंत चोवीशीयें ए, हु बहु कल्याण ॥ जिन उत्तम पद पद्मनें; नमतां. होय सुखखाण ॥७॥
॥अथ पंचमी- चैत्यवंदन ॥ ॥ त्रिगडे बेग वीरजिन, नाखे नविजन श्रागें॥ त्रिकरण\ त्रिहुँ लोक जन, निसुणो मन रागें ॥१॥ बाराहो नलि नातसें, पांचम अजुवाली ॥ ज्ञान
आराधन कारणे, एइज तिथि निहाली॥२॥ज्ञान विना पशु सारिखा, जाणो एणे संसार ॥ ज्ञान