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द्वितीयपरिछेद. १६ए ॥ श्रथ सिझाचलजीनु चैत्यवंदनप्रारंजः॥
॥ विमल केवलझान कमला, कलितत्रिजुवन, हितकरं ॥ सुरराजसंस्तुत चरणपंकज नमो श्रादि जिनेश्वरम् ॥ १॥ विमलगिरिवर, शृंगमंडण, प्रवरगुण गणनूधरं ॥ सुर असुर किन्नर, कोमिसेवित ॥ नमो ॥२॥ करति नाटिक किन्नरीगण, गाय जिनगुण मनहरं ॥ निर्जरा वली नमे अहोनिश ॥ नमो० ॥३॥ पुंडरीक गणपति सिकि साधि, कौकि पण मुनि मनहरं ॥ श्रीविमल गिरिवर शृंग सिद्धा ॥ नमो० ॥४॥ निज साध्यसाधन सुर मुनिवर, कोडीनंत ए गिरिवरम् ॥ मुक्तिरमणी वर्या रंगें ॥ नमो० ॥५॥ पाताल नर सुर लोकमांहि, विमलगिरिवर तोपरं ॥ नहिं अधिक तीर्थ तीर्थपति कहे॥ नमो ॥६॥ एम विमल गिरिवर शिखरमंमण, मुख विहंडण ध्याश्ये ॥ निज शुछ सत्ता साधनार्थ, परम ज्योति निपाश्य ॥ जितमोद कोद विगेह निमा, परम पदस्थित जयकरम् ॥ गिरिराज सेवा करण तत्पर, पद्मविजय सुहितकरं ॥७॥ इति चैत्यवंदनं समाप्तं ॥
॥ अथ चोवीसजीननु चैत्यवंदन ॥ ॥ सुर किन्नरनागनरिंदनतं, प्रणमामि युगादिम जिनमजितं ॥ संनवमजिनंदनमथ सुमति, पद्मप्रज