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प्रथमपरिछेद. ११ न वेसणो संदिस्सा(गुरु कदै संदिस्सावेद) पवै श्वं कही खमा० देई श्वा० सं० न० वै सणोगलं (गुरु कहै गए है) प→ कही खमासमण देई॥श्वा० सं० न० सिझाय सं दिस्सा (गुरु कहे संदिस्सावेद ) पवै वं कही ॥ पांगरणोपमिग्घा (गुरु कदै पडिग्घा एह ) पवै॥श्वं ॥ कही॥ वस्त्र ग्रहण करै. इति प्रजातसामायक ग्रहणविधि।
॥ अथ देवसी प्रतिक्रमण ॥ ॥प्रथम चैत्यवंदन ॥ जयतिहणनी पांच गाथा पदलाथी और दोय गाथा बेडानी कही जय महाशय २ कहीने सक्रस्तव आदि चारे थोन देववंदन करीनीचा वैसीने नमोबणं कहे पने वांदणापूर्वक श्री आचर्यमिश्र १ श्रीनपा ध्यायजी मिश्र श्री वर्तमाननहारक श्री पूज्य जीनो नाम लेश वांदीये ३ सर्व साधु साध्वी वांङ ॥ पने सबसवि राईय देवशिय करेमि नंते० श्वामि गमि0 तस्सुतरी अन्नतू आठ नवकारनो काउसग्गकरे मुंदडे लोगस्स कहे पड़े तीजे आवश्य करी मुहपत्ती पमिले