________________
१००
जैनधर्मसिंधु. आचार्य, उपाध्याय अने सर्वसाधु, ए चारेने प्रत्येके एकेकुं खमासमण देश वांदवा ॥ पनी बे खमासमण देवापूर्वक सजायनो आदेश मागी एक नवकार गणी नरदेसरनी सजाय कही फरी एक नवकार गणी श्बाकार सुदराई० कदी श्बाकारेण संदिसह नगवन राईप्रतिक मणे गवं एम कदी जमणो दाथ उपधि ऊपर थापी श्वं सवस्सवि राश्य उचिंतिया कहीये पठी नमोलुणं, करेमि नंतेश्वामि गमि का नस्सग्गं, जोमे राजे0, तस्सउत्तरी कही एक लोगस्स अथवा चार नवकारनो कानस्स ग्ग पारी प्रगट लोगस्स कहीने सबलोए अरि हंतचेश्याणं कदी एक लोगस्स अथवा चार नवकारनो कानस्सग्ग करवो ॥ पनी पुरकरवर दी०, सुअस्स०, वंदण, कदी, अतिचारनी आठ गाथा (अथवा) गाथा न आवमे तो आ 5 नवकारनो कानस्सग्ग पारी सिहाणं बुाणं कदी बेसीने वीजा आवश्यकनी मुदपत्ति पनि लेही वांदणां बे देवां ॥पी कन्नाथई इबाकारे ण संदिसद नगवन् राश्यं आलोचं चं आ