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जैनधर्मसिंधुः निमित्तं कानस्सग्ग करूं, चं पुस्करकां क म्मका निमित्तं करेमि कानस्सग्गं “अन्नबा" कही “संपूर्ण चार लोगस्स अथवा शोल न वकार” नो कानस्सग्ग करवो, ते जेने लघु शां ति कदेवी होय एवो एक वडेरो, अथवा पोते शांति कदेवावालो दोय तो पोतेज पारीने “ नमोऽर्दत्” कदी लघुशांति कहीने प्रगट लोगस्स कदे ॥ परी शरियावदी अने तस्स उ त्तरी कदी, एक लोगस्स अथवा चार नवकार नो कानस्सग्ग करी, प्रगट लोगस्स कठेवो॥ परी चनक्कसाय कदी, नमुथ्थुणं कही, जावंति चेश्ाइं कही खमासमण देश जावंति केवि साहु कही उवसग्गहरं कही हाथ जोडी मस्तकें राखी जयवीयराय कही खमासमण देश मुदप त्ति पमिलेदवी॥ पठी खमासमण देई इबाका रेण संदिसद नगवन् सामायिक पालं. आ स्थानकें जो सादात्गुरु बिराजमान होय तो ते कदे के"पुणोवि कायवं” तेवार शिष्य"यथाश क्ति” कही फरी खमासमण देईश्बाकारेण संदि सह जगवन् सामायिक पायुं. तेवारें गुरु कदे