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जैनधर्मसिंधु.
किन्नर कोडि सवित ॥ नमो० ॥ २ ॥ करती ना टक किन्नरी गण, गाय जिन गुण मनहरम् ॥ निर्जरावली नमे प्रदोनिश ॥ नमो० ॥ ३ ॥ पुंम रिक गणपति सिद्धि साधी, कोमि पण मुनि म नद्रम् ॥ श्रीविमल गिरिवर शृंग सिधा ॥ नमो ० ॥ ४ ॥ निज साध्य साधन सुरिंद मुनिवर, कोडि नंत ए गिरिवरम् ॥ मुक्ति रमणी वस्या रंगे ॥ न मो० ॥ ५ ॥ पाताल नर सुरलोक मांदी, विमल गिरिवरतोपरम् ॥ नदि अधिक तीरथ तीर्थपत कदे ॥ नमो० ॥ ६ ॥ इम विमल गिरिवर शि खर मंडण, दुःख विदंडा ध्याईयें ॥ निज शु६ सत्ता साधनार्थ, परम ज्योति निपाइयें ॥ ७ ॥ जित मोद कोढ़ विबोद निषा, परमपद स्थित जयकरम् ॥ गिरिराज सेवाकरण तत्पर, पद्मवि जय सुदित करम् ॥ ८ ॥ इति ॥ ७३ ॥
॥ चप्रथ सिन्धाचलनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ श्री शत्रुंजय सि६ खेत्र, दीवे दुर्गति वारे ॥ नाव धरीने जे चढे, तेने जवपार उतारे ॥ १॥ अनंत सिनो एद ठाम, सकल तीरथनोराय ॥ पूर्व नवाणुं शखनदेव, ज्यां वविच्या प्रभुपाय