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जैनधर्मसिंधु. गोमे सास अप्पा, नाण दंसण संजुसेसा मे बादिरा मावा, सवे संजोगलकण ॥१२॥ संजोगमूला जीवेण, पत्ता उस्कपरंपरा ॥ तम्हा संजोग संबंध, सवं तिविदेण वोसिरि॥१३॥ अरिहंतो मद देवो, जावजीवं सु साहुणो गुरु णो ॥ जिणपन्नत्तं तत्तं, श्अ सम्मत्तं मए गदि अं॥१४॥ खमित्र खमाविअ मइ खमित्र सबद जीव निकाय ॥ सिह साख आलोयण द, मुद्यद वर न नाव ॥ १५॥ सवे जीवा क म्म वस्स चनदह राज जमत ॥ ते मे सब ख माविआ, मुद्यवि तेह खमंत ॥१६॥ जं जं म णेण बई, जं जं वारण मासिअंपावं ॥ जंजं काएण कयं, मिबामि कम तस्स ॥१७॥ ॥इति संथारा पोरिसी ॥४०॥
॥अथ चैत्यवंदन ॥ तत्र प्रथमं सीमंधरजिनचैत्यवंदनं ॥
॥ सीमंधर परमातमा, शिव सुखना दाता॥ पुरस्कल व विजये जयो, सर्व जीवना त्राता ॥१॥ पूर्व विदेह घुमरीगिणी, नयरीये शोहे॥ श्री श्रेयांस राजा तिहां, नविअणनां मन मो