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जैनधर्मसिंधु.
॥ ६९ ॥ अथ पोसद पारतां गाया || ॥ सागरचंदो कामो, चंदवडिँसो सुदंसणो धन्नो ॥ जेसिं पोसद पमिमा, प्रखंमिया जी विच्यं तेवि ॥ १ ॥ धन्ना सलाद णिका, सुलसा आणंद कामदेवाय ॥ जेसिं पसंसइ नयवं, ६ वयं तं महावीरो ॥ २ ॥ पोसदविधे लीधनं विधे पारीनं विधि करतां जे कोइ प्रविधि दुर्ज दोइ, ते सवि हुं मने वचने कायायें करी मि चामि डुक्कडं ॥ ॥ इति ॥ ६९ ॥
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॥ ७० ॥ अथ संथारापोरिसी ॥ ॥ निसिदी निसिदी निसिदी ॥ नमो खमास मणाणं, गोयमाइ ॥ महामुखीणं ॥ ए पाठ त या नवकार तथा करेमि नंते समाइ ॥ एट ला सर्व पाठ त्रण वार कदीने ॥ प्रणुजादजि हिता ॥ प्रणुजाद परमगुरू, गरुगुणरय
हिं मंगियसरीरा ॥ बहुपमिपुन्नापोरिसि, रा इय संथारामि ॥ १ ॥ प्रणुजाद संथारं बाहुवदाणे वामपासेणं ॥ कुकुमिपायपसा रण अंतरंत पमऊ भूमिं ॥ २ ॥ संकोइ संमासा, नवते काय पमिदा || दुबइ न