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चन्दवरदाई द्वारा अपने पृथिवीराजरासो में भी अनेक स्थल पर ढिल्ली शब्द का ही प्रयोग किया गया है' । जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, बुध श्रीधर ने अपने पा.च. की आद्य - प्रशस्ति में पूर्व प्रचलित परम्परा के अनुसार ही दिल्ली को दिल्ली के नाम से ही अभिहित किया है । यह प्रतिलिपिकार की गलती से नही लिखा गया, बल्कि वह उसकी एक समकालीन यथार्थता थी ।
पं. ठक्कुर फेरु, बिजोल्या - शिलालेख, इन्द्रप्रस्थ - प्रबन्ध,
कुछ अप्रकाशित पाण्डुलिपियों एवं पृथिवीराजरासो के तद्विषयक प्रमाण
सुप्रसिद्ध द्रव्यपरीक्षक एवं वास्तुविद् पं. ठक्कुर फेरु तोमरकालीन ढिल्ली की टकसाल के मुद्रा-विशेषज्ञ थे। उन्होंने अपने 'रत्नपरीक्षादि सप्तग्रन्थ संग्रह' (पृ. 31 ) में ढिल्ली राज्य में प्रचलित तोमर - राजाओं की मुद्राओं को 'ढिल्लिकासत्कमुद्रा' कहकर उनके धातु-द्रव्यों तथा उनमें मिश्रणों से बनने वाली विभिन्न मुद्राओं (सिक्कों) के मूल्य एवं वजन के विषय में कहा है
अणग मयणप्पलाहे पिथउपलाहे य चाहडपलाहे । सय मज्झि टंक सोलह रुप्पउ उणवीस करि मुल्लो ।।
- एता ढिल्लिकासत्कमुद्रा राजपुत्र- तोमरस्य
इसी प्रकार बिजौल्या के वि.सं. 1226 (सन् 1169) के एक शिलालेख में दिल्ली को ढिल्लिका नाम से अभिहित किया गया है।
प्रतोल्यां च बलम्यां च येन विश्रामितं यशः ।
ढिल्लिका ग्रहण श्रान्तमासिका लाभलीभ्मतः ।। 22 ।।
वि.सं. 1685 (सन् 1628) में लिखित दिल्ली की एक "राजावली कथा" मिली है, जो अद्यावधि अप्रकाशित है। उसका नाम ही "अथ ढीली स्थान की राजावली लिख्यते 4 है।
इसी प्रकार एक अजैन गुटका सं. 392 में भी इसका उल्लेख मिलता है। उसका नाम है अथ 'ढिल्ली पातिसाहि कौ व्यौरो
बुध श्रीधर के उल्लेखानुसार उसके समय में उक्त ढिल्ली नगर हरियाणा प्रदेश का एक प्रमुख नगर माना जाता था। 'पृथिवीराजरासो' में पृथिवीराज चौहान के प्रसंगों में दिल्ली के लिए 'ढिल्ली' शब्द का ही अनेक स्थलों पर प्रयोग हुआ है। इसमें इस नामकरण की एक मनोरंजक कथा भी कही गई है, जिसे तोमरवंशी राजा अनंगपाल की पुत्री अथवा पृथिवीराज चौहान की माता ने स्वयं पृथिवीराज को सुनायी थी । तदनुसार राज्य की स्थिरता के लिये जग-ज्योति नामक एक ज्योतिषी के आदेशानुसार अनंगपाल (प्रथम) द्वारा जिस स्थान पर कीली गाडी गई थी, वह स्थान प्रारम्भ में 'किल्ली' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । किन्तु उस कील को ढीला कर देने से उस स्थान का नाम 'ढिल्ली' पड़ गया, (जो कालान्तर में दिल्ली के नाम से जाना जाने लगा ) 18वीं सदी तक दिल्ली के 11 नामों में से 'दिल्ली' भी एक नाम माना जाता रहा, जैसा कि 'इन्द्रप्रस्थप्रबन्ध ( अज्ञातकर्तृक) में एक उल्लेख मिलता है— शक्रपन्था इन्द्रप्रस्थ शुभकृत योगिनीपुरः । दिल्ली ढिल्ली महापुर्या जिहानाबाद इष्यते । ।
1. दे. सम्राट पृथिवीराज, पृ. 102, 119, 149, 170, 180, 185 216 आदि आदि
2.
पा.च. 1/2/16
3.
दिल्ली के तोमर पृ. 313
4-5. ये पाण्डुलिपियाँ दिल्ली के पंचायती जैन मन्दिर में गुटका सं. 99 में सुरक्षित हैं।
प्रस्तावना :: 41