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टक्क देश-2/4/10
कच्छाहिव ( कच्छाधिप)-2/14/10
सेंधव-2/18/11
कुसत्थल-देश-3/2/9
बंभवल (दूत)-3/1/4
सक्कवम्म ( शक्रवर्मा)-3/1/4
काहल-करड आदि - 2/17/10
अस्त्र-शस्त्र - 4/9/12
प्राच्यकालीन उत्तर भारत का एक राज्य जैन साहित्य में इसका अनेक स्थलों पर नामोल्लेख हुआ है किन्तु उसकी अवस्थिति (Location) के विषय जानकारी नहीं है। बहुत सम्भव हे कि वर्तमान राजस्थान का टोंक जिला ही प्राच्यकालीन टक्कदेश रहा हो ?
इतिहासकारों के अनुसार सन् 150 ई. में राजा रुद्रदामन् ने अनेक पश्चिमी राज्यों के साथ कच्छ पर भी विजय प्राप्त की थी। सीमान्तवर्त्ती राज्य होने के कारण इसका विशेष महत्त्व था। दसवीं सदी के मध्य में इस कच्छ राज्य पर मूलराज सोलंकी ने वहाँ के राजा लाखा (लक्ष) पर आक्रमण कर उसे पराजित कर दिया था । (देखें History and Culture of Indian People, Vol. IV, P. 103)
सिन्धु देश का राजा । सीमान्तवर्त्ती राज्य होने के कारण इसका विशेष महत्त्व था। बहुत सम्भव है कि बुध श्रीधर के पूर्व की सदियों में वहाँ सेंधव नामक राजवंश का साम्राज्य रहा हो ? यहाँ के उत्तव जाति के घोड़े सैंधव के नाम से प्रसिद्ध माने जाते थे ।
पासणाहचरिउ में युवराज पार्श्व के मामा राजा रविकीर्ति के प्रसंग में इसका उल्लेख हुआ है । | महाभारत के सभापर्व (14/50) के अनुसार यह द्वारकापुरी का अपरनाम है, जबकि पासणाहचरिउ (रइधूकृत) के अनुसार इसे उत्तर-प्रदेश एवं पंजाब की सीमा पर कहीं होना चाहिए । कुछ इतिहासकार इसे कान्यकुब्ज (कन्नौज) का अपरनाम मानते हैं।
राजा शक्रवर्मा के पुत्र राजा रविकीर्ति के द्वारा भेजे गये दूत का नाम । कवि इस दूत के प्रसंग में सन्देश वाहक दूत के लक्षणों पर अच्छा प्रकाश डाला
है ।
कुशस्थल का राजा । कुछ पार्श्वचरित-ग्रन्थों में राजा हयसेन एवं शक्रवर्मा का कोई सम्बन्ध नहीं बतलाया गया है जबकि महाकवि श्रीधर ने शक्रवर्मा को पार्श्व का नाना बतलाया है।
पार्श्व के लिये प्रदत्त संगीत वाद्य आदि की सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक शिक्षा प्रदान की गई। वाद्यों के नाम निम्न प्रकार हैं— मंदल, टिविल (तबला), ताल, कंसाल, भंमा, भेरी, झल्लरी, काहला-करड, कंबु (शंख), वरड (डमरु) डक्क, हुडुक्क एवं टट्ट |
पासणाहचरिउ में वर्णित युद्ध प्रसंगों में दो प्रकार के शस्त्रास्त्रों के उल्लेख मिलते हैं- पौराणिक एवं यथार्थ । बुध श्रीधर क काल वस्तुतः युद्धों का काल था। उसके निकटवर्ती पूर्वकाल में तथा उसके काल में देश-विदेश के अनेक राजाओं के युद्ध हो रहे थे। अतः कवि ने समकालीन जिन शस्त्रास्त्रों के नाम देखें सुने थे, उनका उल्लेख उसने राजा रविकीर्ति, पार्श्व एवं यवनराजा के
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