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________________ घत्ता- संपत्तउ मोक्खहो अविचल-सोक्खहो सुरयणेहिँ अहिणंदउ। णट्टल-आराहिउ कइयण-साहिउ तव-सिरिहरि मुणि-वंदिउ।। 226 || 12/18 Poet's blessings for Sāhu Nattala. Informations regarding composition-place and date of Pāšaņāhacariu including poet's humble request to the intellectuals, learned authors and poets. संसारुत्तारणु पासणाहु धरणिंद-सुरिंद-णरिंदणाहु।। णट्टलहो देउ सुंदर-समाहि पुव्वत्त-कम्म-णित्थरणु बोहि।। मज्झु वि पुणु पउ जो देउ णण्णु गुण-रयण-सरंतहो पास-सण्णु।। राहव-साहुहँ सम्मत्त-लाहु संभवउ समिय संसार-डाहु।। सोढल णामहो सयल वि धरित्ति धवलंति भमउ अणवरउ कित्ति।। तिण्णिवि भाइय सम्मत्त-जुत्त जिण भणिय धम्मविहि करण-धुत्त।। महि-मेरु-जलहि-ससि-सूर जाम सहुँ तणुरुहेहिँ णंदत्तु ताम।। चउविह-वित्थरउ जिणिंद-संघु पर-समय खुद्दवाइहिँ दुलंघु।। वित्थरउ सुयणु जस भूअणि पिल्लि तुट्टउ तडत्ति संसार-वेल्लि।। विक्कम-णरिंद सपसिद्ध कालि दिल्ली-पट्टणि धण-कण विसालि।। सणवासी-एयारह सएहिँ परिवाडिए वरिसहँ परिगएहिँ।। 10 घत्ता- वे अविचल सुखदायक मोक्ष को प्राप्त हुए। उस समय देवगणों ने उनका अभिनन्दन किया (और स्तुतिवन्दन कर उनका मोक्षकल्याणक मनाया।) ऐसे ही पार्श्व प्रभु नट्टल (साहू) द्वारा आराधित एवं कविजनों द्वारा साधित हैं और तपश्री धारी मुनियों द्वारा तथा महाकवि बुध श्रीधर द्वारा वन्दित हैं।। 226 ।। 12/18 आश्रयदाता के प्रति कवि की कल्याण-कामना, रचना-स्थल एवं रचना-काल की सूचना एवं बुधजनों तथा लेखक-कवियों से उसकी विनम्र प्रार्थना संसार से पार उतारने वाले हे पार्श्वनाथ, धरणेन्द्र, सुरेन्द्र एवं नरेन्द्रों के हे नाथ, आप (इस ग्रन्थ-लेखन के लिये प्रेरक एवं आश्रयदाता-) नट्टल साहू को सुन्दर समाधि एवं पूर्वजन्म-कृत-कर्मों का निस्तरण (क्षय) देकर उन्हें बोधि-लाभ प्रदान करें। पुनः पार्श्व-संज्ञक प्रभु के सम्यग्ज्ञानादि-गुणरत्नों का स्मरण कराने वाला जो भी अनन्य पद हो, मुझे भी प्रदान करें। राघव साहू के लिये संसार की दाह को शान्त करने वाले सम्यक्त्व का लाभ हो। सोढल नाम के साहू की कीर्ति समस्त धरित्री को धवलित करती हुई निरन्तर भ्रमण करती रहे। क्योंकि ये तीनों (नटल, राघव एवं सोढल) भाई सम्यक्त्व सहित जिनकथित धर्म की विधि के करने में दक्ष (धुत्त) हैं। जब तक पृथिवी है, सुमेरु-पर्वत है, समुद्र हैं, चन्द्रमा एवं सूर्य हैं, तब तक वे सभी अपनी सन्तानों के साथ नन्दित रहें। पर-समय के क्षुद्रवादियों द्वारा दुर्लध्य जिनेन्द्र का चतुर्विध-संघ निरन्तर विस्तृत होता रहे। सज्जनों का सुयश लोक-पर्यन्त फैले और संसार की बेल तड़ से टूट जाय। धन-धान्य से समृद्ध विशाल इस दिल्ली-पट्टन में विक्रम-नरेन्द्र के नाम से प्रसिद्ध संवत्-काल 1189 वर्षों 260 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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