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________________ 12/14 Series of births and re-births of Kurañga, the Head of Bhilla-community. ता णिग्गउ भिल्ल-कुरंग-जीउ सत्तम-णरयहो होएवि सीह तेणाहउ णिसियाणणणहेहिँ परमेट्ठि पाय-पंकय-भरंतु मुणि तणु पवियारेवि हरिणराउ तत्थहो णीसरेवि भुअंगु जाउ कालोवहि पुणु उप्पण्णु मीणु मंजरु पुणु वीयइ णरय-मज्झि पुणु धीवरु कोढ-विलीण-गत्तु पुणु बंभण-कुलि उप्पण्णु जाम पत्तउ कणयप्पह मुणि-समीउ।। मरुहय तरुपल्लव-चवल-जीहु।। अहिणव ससिरेह समप्पहेहिँ।। कणयप्पह पत्तह वइजयंत।। गउ पंचम-णरइ रउद्द-भाउ ।। गउ पुणु पंकप्पहे करेवि-पाउ।। वालुप्पहे जायउ पुणु णिहीणु।। पुणु पक्खि रयणपहि अइ-दुसज्झि।। कालंतरेण पंचत्तु पत्तु।। बालेण वि पियरइँ गिलिय ताम।। 10 घत्तातो मुअउ ण जाविहिँ घरे-घरे ताविहिँ णर-णारिहिँ धिक्कारिउ । णेहेण णिहालिउ सयलहि पालिउ (क-)मठु भणेवि हिक्कारिउ ।। 223 ।। 12/14 भिल्लाधिपति कुरंग के जन्म-जन्मान्तरों का वर्णन तभी वह कुरंग, जो कि पूर्वजन्म में भिल्लाधिपति था, और जो अपने घातक पापों के कारण मरकर सातवें नरक में नारकी हुआ था, वही जीव अपना आयुष्य पूर्ण कर मरा और अब सिंहयोनि में उत्पन्न हुआ है, जिसकी कि वायु से प्रेरित वृक्ष के पत्ते के समान चंचल जीभ है, वह सिंह तप-ध्यान में स्थित उन मुनिराज कनकप्रभ के पास आया और उसने अपने द्वितीया के नवीन चन्द्रमा की रेखा के समान प्रभा से युक्त अत्यन्त तीक्ष्ण नोक वाले नखों से उन्हें आहत कर डाला। अतः वे पंच-परमेष्ठी के चरण-कमलों का स्मरण करते हुए मरे और वैजयन्त स्वर्ग में पहुँचे। वह सिंह भी मुनि-तन का विदारण करने के कारण रौद्रभाव को प्राप्त हुआ और मरकर पाँचवें नरक में उत्पन्न हुआ। ___ वहाँ का आयुष्य पूर्णकर वह मरा और भुजंग हुआ और वहाँ भी पापकारी कार्य कर मरा और पंक प्रभ नामके चौथे नरक में उत्पन्न हुआ। पुनः वह कालोदधि कृष्ण सागर, (Black Sea) में मीन के रूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ से मरकर वह निरीह बालुका प्रभा नाम के तीसरे नरक में उत्पन्न हुआ। वहाँ से मरकर वह मार्जार हुआ। पुनः मरकर वह दूसरे नरक में उत्पन्न हुआ। वहाँ से भी वह मरा और पक्षी हुआ। पुनः मरकर वह अतिदुस्सह रत्नप्रभा नामके नरक में उत्पन्न हुआ। वहाँ से मरकर वह धीवर हुआ, जो कि कोढ़ से विगलित शरीर वाला था। वहाँ भी आयु पूर्ण कर वह मृत्यु को प्राप्त हुआ और ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ। वहाँ बचपन में ही उसने अपने माता-पिता को निगल लिया। अर्थात् वह बचपन में ही अनाथ हो गया। घत्ता- जब तक वह मरा नहीं तब तक वह घर-घर में भटकता रहा और नर-नारी सभी उसे धिक्कारते रहे। फिर भी सभी ने उसे स्नेहहीन देखकर स्नेह से पाला भी और मठ-मठु (कमठ) कह-कहकर उसे हिकारत (घृणित) दृष्टि से देखा भी।। 223|| 256 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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