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________________ 5 10 12/11 Sureša, the previous soul of King Chakrāyudha after his death comes into the womb of queen Prabhañkarī. मुझा विरइवि पाण-चाउ मिच्छो वि कुरंगाहिउ मरेवि जायउ सत्तमणरयंतरालि इह जंबूदीवइ सुह-पयासि विजयाहिहाणि वर विउलखेत्ति पुरि तित्थु पहंकरि वज्जवाहु तहो घरिणि पहंकरि णिसि विरामि कमलायरु सायरु सेयभाणु भासिवि पिययमहो सुणेवि ताहँ जा थिय घरि ता अवयरिउ गमि मज्झिम गेवज्जि सुरेसु जाउ ।। कोढेण सडिवि दुहु अणुसरेवि ।। हणु-हणु भणत णारय करालि ।। सिरि पुव्व - विदेहइ हय-पयासि । । परिपक्क सालि सोहंत खेत्ति ।। णामेण णरिंदु पलंब-बाहु ।। देक्खिवि ताउ सुविणइँ सधामि ।। हरि हुअवहु वसहु सुदाम भाणु ।। फलु णिरुवमु अइ णिम्मलयराहँ ।। तो तणइँ विमल सरयब्म सुमि ।। घत्ता - सो सुरहँ पियारउ मयण वियारउ रूवणिहय कुसुमाउहु । मज्झिम-गवेज्जहो अइणिरवज्जहो जो होंतर चक्काउहु ।। 220 ।। 12/11 पूर्वजन्म का जीव-चक्रायुध - सुरेश देव - योनि से चयकर रानी प्रभंकरी के गर्भ में आता है मुनिराज चक्रायुध ने ध्यान में रत रहकर प्राण त्यागे और मध्यम ग्रैवेयक में सुरेश रूप में उत्पन्न हुए । इधर, वह म्लेच्छ कुरंग भीलाधिपति कोढ-रोग से सड़-गल कर दुखों को भोगता हुआ मरा और "मारो-मारो" आदि की चिल्लाहट वाले सातवें नरक की विकराल भूमि में उत्पन्न हुआ। सुख- प्रकाशक इसी जम्बूद्वीप में श्री सम्पन्न पूर्व - विदेह में शुभ-प्रकाशक विजय नामका एक उत्तम विशाल देश है जो परिपक्व शालि-धान्य के खेतों से निरन्तर सुशोभित रहता है। वहाँ प्रभंकरी नाम की नगरी में प्रलम्ब-बाहु(आजानबाहु) बज्रवाहु नामका राजा राज्य करता था। उसकी गृहिणी रानी प्रभंकरी ने अपने कक्ष में सोते समय रात्रि के अन्तिम प्रहर में आठ स्वप्न देखे- (1) कमलाकर सरोवर, (2) सागर, (3) श्वेतभानु- चन्द्रमा, (4) सिंह, (5) निर्धूम- अग्नि, (6) वृषभ, ( 7 ) उत्तम माला, एवं, ( 8 ) सूर्य । रानी ने वे स्वप्न अपने प्रियतम राजा बज्रबाहु को सुनाये और उनका निर्मलतम अनुपम फल सुनकर वह रानी अपने कक्ष में वापिस लौट आई। समयानुसार शरद्कालीन निर्मल शुभ्र मेघ के समान रानी के गर्भ में घत्ता- वह देवों का प्यारा, मदन - विदारक अपने सौन्दर्य से कुसुमायुध को मात कर देने वाला तथा पूर्वजन्म का, जो राजा चक्रायुध था तथा देह त्याग कर, और जो निरवद्य मध्यम ग्रैवेयक में सुरेन्द्र के रूप में जन्मा था, वही वहाँ से चयकर उस प्रभंकरी रानी के गर्भ में आया ।। 220 ।। पासणाहचरिउ :: 253
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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