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________________ 12/9 King Vajravīra also becomes an ascetic and Prince Chakrāyudha becomes the King. तहिँ वसइ गयणयल-लग्ग-साल तत्थरिथ णराहिउ वज्जवीरु तहो अग्गिमहिसि चलदीहरच्छि जो किरणवेउ खयराहिराउ तत्थहो चएवि गुणरयण-भूउ चक्कंकिय-करु लक्खणिण-सिद्ध णिय पुत्तु लएवि जणे रएण विहियउ चक्काउहु णामु तासु परियाणिय णिम्मलयर-कलासु तहो विजया घरिणिए सहुँ सराहु णामेण पहंकरि पुरि विसाल ।। अरिणियर-मही णिद्दलण-सीरु।। लच्छीमइ णाम णाइँ लच्छि।। तउ विरइवि अच्चुवसग्गे जाउ।। लच्छीमइहे सो हुउ तणूउ ।। चिर-विहिय-पुण्ण लच्छी-समिछु ।। सुहि सुअणहु सुक्ख-जणेरएण।। ण मुअइ खणिक्कु सह लच्छि जासु।। विद्दलिय सयल-महियल-खलासु।। परिगलिय सिसुत्तणि कउ विवाहु।। 10 . पत्ता- वइराएँ लइयउ हुउ पव्वइयउ वज्जवीरु पुहवीसरु। रायसिरि सपुत्तहो अप्पिवि धुत्तहो तणु जुइ णिहय रईसरु ।। 218 ।। 12/9 राजा वजवीर अपने पुत्र चक्रायुध को राज्य-भार सौंपकर दीक्षा ले लेता हैउस गन्धिल-देश में गगनतल से लगे हुए उत्तुंग साल (परकोटे) वाली प्रभंकरी नामकी विशाल पुरी है। वहाँ वजवीर नामका राजा राज्य करता था, जो शत्रु-समूह रूपी भूमि को विदारने के लिये हल के समान था। उस राजा वज्रवीर की चंचल विशाल नेत्रों वाली लक्ष्मीमती नामकी अग्रमहिषी थी, जो ऐसी प्रतीत होती थी मानों साक्षात् लक्ष्मी ही हो। (पूर्व-कथित-) किरणवेग नाम का जो विद्याधर राजा था, और जो तपस्या कर अच्युत-स्वर्ग में जन्मा था। उसी का जीव वहाँ से चयकर लक्ष्मीमती रानी के गुणरत्न रूप पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। उस पुत्र का हाथ चक्रांकित था, विशिष्ट लक्षणों से सिद्ध था तथा पूर्वकृत पुण्य के प्रभाव से लक्ष्मी से समृद्ध था। सुधी-मित्रों एवं सज्जनों में सुख उत्पन्न करने वाले पिता राजा वज्रवीर ने अत्यन्त प्रमुदित मन से अपने उस पुत्र का लोगों की उपस्थिति में चक्रायुध नाम घोषित किया। लक्ष्मी तो उसका एक क्षण के लिये भी साथ नहीं छोड़ती थी। वह राजकुमार चक्रायुध निर्मलतर कलाओं में शीघ्र ही निपुण हो गया और उसने (अपने पराक्रम से-) महीतल के समस्त खलजनों को दलित कर दिया था। बाल्यकाल व्यतीत हो जाने पर उसका विवाह विजया नामकी एक कन्या के साथ समारोह पूर्वक सम्पन्न हुआ। घत्ता- तत्पश्चात् अपनी तन-द्युति से रतीश्वर कामदेव को निष्प्रभ करने वाले उस पृथिवीश्वर राजा वज्रवीर को वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने राजनीति में कुशल (धुत्त) अपने पुत्र चक्रायुध को राज्यश्री सौंप दी और प्रव्रजित हो गया।। 218 ।। पासणाहचरिउ :: 251
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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