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________________ यहाँ तक कि जब वह ढिल्ली की सड़कों पर घूम रहा था, तो उसे उन सड़कों के सौन्दर्य-वर्णन के लिए कातन्त्रव्याकरण की पंजिका के सौन्दर्य से अधिक सुन्दर अन्य कोई उपमान ही नहीं मिला और उसने अत्यन्त भावुक एवं प्रमुदित भाव से कह दिया–“हट्टमग्गु कातंत पिव पंजी समिछु' उसे दिल्ली के जन-सामान्य की बोली तथा नाटक-मण्डलियों के संवादों अथवा कथनोपकथनों (Dialogues) में भी व्याकरण में प्रयुक्त सुवर्णों का सौन्दर्य ही सुनने देखने में आ रहा था। ___ कवि के पाण्डित्य की एक अन्य विशेषता यह भी थी कि जहाँ उसे समकालीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं लोकजीवन का गहन अध्ययन था, वहीं उसे सामाजिक रीति-रिवाजों एवं सामान्य जनों के ज्ञान-विज्ञान एवं मनोविज्ञान तथा ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष-विद्या, रणनीति, युद्ध-कला आदि की भी जानकारी थी। उसकी दृष्टि इतनी पैनी एवं विशाल थी कि भ्रमण करते समय प्रायः समस्त वस्तुएँ उसके दृष्टिपथ से साक्षात्कार करती रहती थीं। कवि को यह भी जानकारी थी कि किस देश के कौन-कौन से शस्त्रास्त्र प्रसिद्ध है तथा विदेशी आक्रान्ता युद्धप्रयाण के समय गायों को सब से आगे क्यों रखा करते थे? वन्य-सम्पदा एवं पशु-पक्षियों तथा जंगली जानवरों का ज्ञान तो कवि को इतना अधिक था कि ऐसा प्रतीत होता है कि मलिक मुहम्मद जायसी ने उसी से प्रेरित होकर अपने पद्मावत में विविध प्रकार की वनस्पतियों (वसन्तखण्ड 187-189) एवं वन्य-प्राणियों (541) का वर्णन किया हो। यही स्थिति उसके आर्थिक एवं भौगोलिक सम्बन्धी ज्ञान की भी है। उसने ये वर्णन अपनी कल्पना के आधार पर नहीं, बल्कि यथार्थ के आधार पर किये हैं, जहाँ उसे दिल्ली-किल्ली एवं उनसे सम्बन्धित राजवंशों, वहाँ के कीर्ति-स्तम्भ के इतिहास की जानकारी थी, वहीं उसे दिल्ली नगर के हाट-मार्ग, वहाँ की विक्रय हेतु प्रस्तुत विविध सामग्रियाँ, प्रेक्षागार, घुड़दौड के मनोरंजक उत्सव, खेतों की सिंचाई में प्रयुक्त रहँटों की घरघराह नृत्य, रंग-बिरंगे रेशमी वस्त्रों में सजी-धजी हाट-बाजार करती हुई युवतियाँ, विशाल अनंग-सरोवर, गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ आदि-आदि भी उसकी दृष्टि से ओझल न हो सकीं। कवि ने खुले मन से उनकी यथार्थता का मनोहारी चित्रण किया है। ये सभी वर्णन देखकर उसकी “बुध" अथवा विबुध उपाधि सार्थक प्रतीत होती है। उक्त सामग्री निश्चय ही मध्यकालीन समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र तथा लोक-जीवन के लेखकों के लिये उनके इतिहास-लेखन में सहायक सिद्ध हो सकती है। पासणाहचरिउ : ग्रन्थ-परिमाण एवं वर्ण्य-विषय वर्गीकरण प्रस्तुत 'पासणाहचरिउ' में कुल मिलाकर 12 सन्धियाँ एवं 235 कडवक हैं। कवि ने इसे 2500 ग्रन्थाग्र-प्रमाण कहा है। मध्यकालीन पाण्डुलिपियों की यह विशेषता है कि प्रतिलिपिकार उसके अन्त में ग्रन्थाग्र-प्रमाण की संख्या भी लिख दिया करते थे। यह सम्भवतः इसलिये आवश्यक था, जिससे कि परवर्ती प्रतिलिपिकार उसमें स्वेच्छया प्रक्षिप्तांश जोड़कर या कुछ अंश घटा कर उसकी प्रामाणिकता को सन्दिग्ध न बना सकें। प्रस्तुत ग्रन्थ के वर्ण्यविषय का संक्षिप्त वर्गीकरण एवं उसकी कडवक संख्या निम्न प्रकार है 1. पासणाह. 1/3/10 पासणाह. 1/17 घत्ता पासणाह. 2/17/11,3/11-13 पासणाह. 4/13/14 5. पद्मावत - संजीवन-भाष्य - प्रो. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा सम्पादित। प्रस्तावना :: 31
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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