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________________ 11/24 Characteristics of Kupātras (Those who are with proper external conduct but without rightbelief) And Apātra or unworthy donees (deficient donees) or those who have neither proper external conduct nor real right belief. Their is no merit in giving them any anything. णिज्जिय सविसाय कसायविंदु णिद्दारिय पंचेंदिय-करिंदु।। सो भणिउ कुपत्तु मुणीसरेहिँ विद्धंसिय मयरद्धयसरेहिँ।। जो सयल जीव दय-रहिउ चित्तु जंपइ असच्चु अवहरइ वित्तु।। पर-रमणि रमइ जाणइ ण कज्जु बहु दोस परिग्गहु पियइ मज्जु ।। किमि-कुल-संकुलु पलु गसइ मूदु सदु परियणु पंजर मज्झिदु।। मय-मोह-कसाय-विसाय-सत्तु गुण-वय-सम-संजम-सील-चत्तु।। एरिसु अपत्तु जाणेवि मणेण सम्मत्तालंकिय भवियणेण।। पवियारेवि बहुविह पत्त-भेउ गुणदोसहँ भायणु गुण-णिकेउ।। पडिगाहेवि परिवज्जे वि णिंदु तहो भत्तिए सइँ दिज्जइँ अणिंदु।। 10 णिय सत्तिए पवर आहारदाणु सिवपय णिमित्तु उज्झिवि णियाणु।। घत्ता-गेहंगणि आइउ मुणि गयरायउ धरिउ उत्तरासंगें। ठा ठाहे भणेप्पिणु णरेण णवेप्पिणु लिज्जइ भत्ति पसग्नें।। 208 ।। 11/24 पात्र-भेद जघन्य पात्र, कुपात्र एवं अपात्र-और जिसने विषाद-पूर्वक अर्थात् कठोर साधनापूर्वक कषायों को जीत लिया है, और जिसने पंचेन्द्रिय रूपी करीन्द्र को विदीर्ण कर डाला है, वह जघन्य पात्र है। मुनीश्वरों ने उसे कुपात्र कहा है। जो कामवाणों से विध्वंसित है, जिसका चित्त सभी जीवों के प्रति दया रहित है, जो असत्य बोलता है, परधन का अपहरण करता है. परस्त्री के साथ रमण करता है. कर्त्तव्य-कार्य नहीं जानता, अनेक दोषों को ग्रहण करता रहता है और जो मद्य पीता रहता है। जो मूढ कृमि-कुल से भरे हुए मांस का भक्षण करता है, जो मूर्ख अपने परिजन रूपी पिंजड़े में बँधा है, मद, मोह, कषाय एवं विषयों में आसक्त है तथा जो गुणव्रत, समता, संयम और शील रहित है, उसे सम्यक्त्व से अलंकृत भव्यजन अपने मन से ही अपात्र जानें। इस प्रकार गुण-दोषों के भाजन पात्रों के विविध प्रकारों पर विचार करके किसी गुणों के निकेत मुनीन्द्र के लिये निन्दा आदि छोडकर अपनी शक्ति एवं भक्तिपर्वक शिव-पद प्राप्ति के निमित्त निदान की भावना से दूर रहकर अनिन्द्य आहारदान देना चाहिए। घत्ता- श्रावकगण (स्वच्छ-) धोती धारण कर अपने घर के आंगन में पधारे हुए वीतरागी मुनि के लिये "ठा-ठाहि" अर्थात् पधारिये-पधारिये कहकर उन्हें सिर झुकाकार, (प्रणाम कर) भक्ति-पूर्वक अपने घर के आहार-कक्ष के भीतर ले आना चाहिए-|| 208 || 240 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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