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________________ 5 10 11/20 Features of bad and good charity. तिल-घय रुप्पय कंचणहँ धेणु ते सूणागारहँ अइ णिकिट्ठ संकंति गहण वारेसु दाणु ते छिंदेवि वर सम्मत्त-रुक्खु जेदिति कण्ण भव- दुक्खरासि जे देंति स - पियरहँ तित्ति-हेउ ते दड्ढरुक्ख सिंचहि वराय लिंति देंति आमिसु गसंति इ बहुवि दाइँ परिहरेवि गिवग्गु पीणियइँ सव्वु हम्मइँ ण पत्तु जसु होइ जेम जे दिति दियहँ संजणिय रेणु ।। तिहुअण-वइणा णाणेण दिट्ठ | | जे देंति मूढ संजणि माणु ।। कय दुक्खु ववहिँ मिच्छत्त-रुक्खु ।। ते कह तरंति भव-वारि- रासि ।। बहुवि दाहँ अति भेउ ।। पल्लव- णिमित्तु उल्लसिय काय ।। ते णरय-वासि तिण्णिवि वसंति ।। दिज्जइ सुदाणु जिणु मणि धरेवि । । पाविज्जइ सुहगइ सो सुदव्वु ।। उवसामिज्जइ परु अप्पु जेम ।। घत्ता— सो दाणु पसंसिउ गुणहिँ विहूसिउ सग्गमोक्ख सुहयारउ । अभयाहारोसहु सत्थु अदोसहु णरयदुक्ख णिवारउ ।। 204 ।। 11/20 अधमदान एवं उत्तमदान की विशेषताएँ जो ब्राह्मणों के लिये रेणु (पाप-रज) कारक तिल, घृत तथा रजत एवं स्वर्ण निर्मित गायों का दान देते हैं, वे खटीक अथवा कसाइयों आदि से भी निकृष्ट हैं (अर्थात् ऐसे दान प्रशस्त नहीं है), ऐसा त्रिभुवन पति ने अपने दिव्य ज्ञान से देखा जाना है । संक्रान्ति के दिनों तथा ग्रहण के दिनों और अन्य दिनों के अवसर पर जो मूढ़ व्यक्ति अहंकार बढ़ाने वाले दान देते हैं, वे मानों सम्यक्त्व रूपी वृक्ष को काटकर दुखकारक मिथ्यात्व रूपी वृक्ष को ही रोपते हैं। भवों की दुखराशि-रूप जो कन्या का दान देते हैं, वे भव-भव रूपी जलराशि को कैसे पार कर सकेंगे? 236 :: पासणाहचरिउ जो दान के रहस्य को नहीं जानते और अपने पितरों की तृप्ति के निमित्त दान देते हैं, वे बेचारे उल्लसित काय होकर पल्लवों के निमित्त मानों दग्ध-वृक्षों को ही सीखते हैं। जो माँस को लेते-देते अथवा खाते हैं, वे तीनों ही (अर्थात् देने, लेने एवं खाने वाले) नरकवास के भागी बनते हैं। इसी प्रकार अन्य अनिष्ट दानों का दान नहीं करना चाहिए और जिनेन्द्र को मन में धारण कर प्रशस्त वस्तु ही दान में देना चाहिए जिससे सभी प्राणिवर्ग सन्तुष्ट हों, जिससे शुभगति मिले, जो पात्रों का घात न कर सके और जिससे सुयश मिले तथा जिससे दाता एवं पात्र दोनों को शान्ति प्राप्त हो सके। घत्ता — वही दान प्रशंसित होता है, गुणों से विभूषित होता है, और स्वर्ग तथा मोक्ष के सुखों को देने वाला होता । अभयदान, आहारदान, औषधिदान एवं शास्त्रदान ये चारों दान निर्दोष हैं तथा नरक के दुखों का निवारण करने वाले हैं। 204 ।। है।
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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