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________________ 11/2 King Hayasena, the father of Lord Pārswa asks inquisitive questions to which he replies. करकमल-जुअलु जोडिवि णरिंदु जिणु जणिय सिद्धि णिचूअकम्मु तं पावेवि जो साहइ ण मुक्खु तहो साहणत्थु णिग्गंथ-मग्गु इउ मुणिवि णराहिव लेहि दिक्ख जिणदिक्ख मुएविणु णत्थि अण्णु इय कहइ जिणेसरु णिवहो जाम इत्थंतरे पत्तउ णायराउ जय देव-देव कमठासुरेण तं सुणिवि पयंपइ पावणासु पुच्छइ वज्जरइ णमिय सुरिंदु।। संसारि णिवइ णरजम्मु रम्म।। तहो जम्मि-जम्मि तुट्टइ ण दुक्खु ।। सदसण-णाण-चरण-समग्गु।। जिणणाह तणिय परियाणि सिक्ख।। परलोयहो साहणे गलियमण्णु।। चउसुरणिकाउ संपत्तु ताम।। विणयेण चवंतु विसुद्धकाउ।। उवसग्गु कियउ कज्जेण केण।। देवाहिदेउ तित्थयरु पासु।। 10 घत्ता-दह-सय-फणि-फणिवइ फुडु थिरु सुणियइ इत्थु जि जंबूदीवए। णाणाविह महिहरि महितीरिणि हरि दो ससि-दिणयर दीवए।। 186 ।। __ 11/2 राजा हयसेन द्वारा पार्वप्रभु से जिज्ञासा भरे प्रश्न एवं उनके उत्तरराजा हयसेन ने अपने हस्त रूपी कमल-युगल जोड़कर जब (जिज्ञासा भरा-) प्रश्न पूछा, तब सुरेन्द्र द्वारा नमस्कृत तथा कर्मों का क्षय कर सिद्धिप्राप्त उन जिनेन्द्र पार्श्व ने उत्तर देते हुए कहा— “हे नृपति, संसार में नरजन्म ही रम्य (एवं श्रेष्ठ) है। उसे पाकर जो मोक्ष की सिद्धि नहीं करता, जन्म-जन्मान्तरों में भी उसके दुख नहीं टूटते। उस मोक्ष को साधने के लिये सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यग्चारित्र से समग्र (पूर्ण रूप से) एक निर्ग्रन्थ (साधु)-मार्ग ही है, यह मानकर हे नराधिप, दीक्षा ले लो तथा जिननाथ की शिक्षाओं को समझ लो। जिन-दीक्षा को छोड़कर अन्य कोई शोक-नाशक तथा परलोक सुधारक-उपाय नहीं है।' जिनेश्वर ने उस नृप के लिये जब यह कहा, तभी वहाँ चतुर्निकाय देव उपस्थित हो गये। इसी बीच विशुद्धकाय नागराज (धरणेन्द्र) भी वहाँ आ गया और उसने विनयपूर्वक पूछा- हे देव, हे देव, आपकी जय हो, (आप यह बतलाइये कि-) कमठासुर ने किस कारण से आप पर उपसर्ग किये थे। उसका प्रश्न सुनकर पाप-नाशक देवाधिदेव तीर्थंकर पार्श्व ने उत्तर में कहा घत्ता- सहस्र फणों के धारी हे फणिपति-नागराज, स्थिर चित्त होकर स्पष्ट सुनो- जिसमें दो सूर्य, दो चन्द्रमा रूपी दीपक हैं, जो नाना प्रकार के पर्वतों तथा महानदियों का स्थल है, ऐसा जम्बू नाम का एक (जम्बू) द्वीप है।। 186 ।। 218:: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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