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9/17 The description of Dhātaki Khañda continent (Dwipa) and
Kalodadhi ocean (Samudra) and others.
धाइइखंड-दीउ तहो दूणउ . चारिलक्ख जोयण परियाणिउ बिण्णि मेरु पुव्वावरदिसि बहि एक्केक्कहो सुरगिरिहें विचित्तइँ चउदइ णइ छविह कुल गिरिवर जंबूदीवे जाइ किर णाम. बहु पयार सरि-गिरि तह खेत्तहँ पढम-दीवि जो गिरि-णइ माण तहो दूणउ कालोवहि णाम अट्ठ लक्ख करि-मयर-भयंकर तहो परेण पुणु दीउ सुणिज्जइ केवलणाणिहि सा वि मुणिज्जइ
लवण-समुद्दहो किंपि ण ऊणउ।। भवियण-पुरउ मुणिंदहँ माणिउ।। कणयवण्ण खेयर कीलहिँ तहि।। चउतीस जि रयणेयरगिरि खेत्तइँ।। भोयभूमि तह सोमरतरुवर।। णाइ तेत्थु सव्वत्थ सणाम.।। जिणवयणुग्गय धम्म पवित्तहँ ।। सावि तेत्थु मुणि खेत्त पमाण।। जलणिहि जंपिउ णिज्जय काम।। कीलंतिहु सुरतियहँ सुहंकरु।। पुक्खरद्धु णामेण भणिज्जइ।। सोलह लक्ख पमाणु गणिज्जइँ।।
घत्ता- णहयलु लंघिवि तहो मज्झिम भाउ सरेविणु।
थिउ मणुसोत्तर-गिरि वलयायारु धरेविणु।। 161 ।।
9/17 धातकीखंड द्वीप एवं कालोदधि समुद्र आदि का वर्णनधातकीखंड द्वीप उस लवण समुद्र की अपेक्षा से दुगुणा है, वह उससे किसी भी प्रकार कम नहीं। अर्थात् धातकी खण्ड द्वीप चार लाख योजन प्रमाण वाला जानो, भव्य जनों के आगे मुनींद्र जनों ने ऐसा ही कहा है। उस धातकी खंड द्वीप की पर्व-पश्चिम दिशाओं के बाहर दो समेरु पर्वत संबंधी कनकवर्ण वाले चौंतीस-चौंतीस विचित्र गिरिक्षेत्र हैं जहाँ जा-जाकर खेचरगण क्रीडाएँ किया करते हैं। इसी प्रकार चौदह नदियों, छह कलाचल और कल्पवक्षों सहित भोग-भूमियाँ तथा जिनेन्द्र के मुख से भाषित धर्म के प्रचार से पवित्र अनेक प्रकार की नदियों, पर्वतों और क्षेत्रों के नाम जंबूद्वीप वाले ही हैं। प्रथम जंबूद्वीप में जो क्षेत्र रचना गिरि, सरि, आदि नाम कहे गये हैं, वही सब क्षेत्रादि प्रमाण से धातकी खंड में भी जानो।
धातकी द्वीप से दुगुणा कालोदधि समुद्र है, ऐसा कामविजयी प्रभु ने कहा है। वह आठ लाख योजन का है और उसका जल हस्ती एवं मगरों से भयंकर तथा क्रीड़ा करने वाली देवांगनाओं के लिए सुखकारी है।
उसके आगे तीसरा द्वीप भी सुना गया है, जिसका नाम पुष्करार्द्ध कहा गया है। गणना में वह सोलह योजन प्रमाण वाला है, ऐसा केवलज्ञानियों ने मनन किया है।
घत्ता- उसके ठीक मध्य भाग में मा मोत्तर पर्वत स्थित है, ऐसा स्मरण करो। वह गगनतल को लाँघकर बलयाकार
रूप धारण किए हुए है।। 161 ।।
पासणाहचरिउ :: 191