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________________ 9/11 The age and height of the celestial lords (Vaimānika Devas), and their limits. बि हि दह बि हि चउदह भवियण सुणु बि हि सोलह बि हि अट्ठारह पुणु।। पुणु बि हि दुगुणिय-दह व णिज्जसु बि हि बाबीस म ममत्ति करेज्जसु।। पुणु एक्केकुक्कउ उअरि चडेज्जसु ताम जाम तेतीस गणेज्जसु ।। केवलणाणिहिँ सोक्ख समिल्लहिँ दोविहु आउ समीरिउ पल्लहिँ।। असुरहँ तणुच्चत्तु पयासिउ पंचवीस धणु जिणहिँ समासिउ।। दह वाणासण वितरदेवहँ सत्तसरायण जोइस-देवहँ।। सत्त हत्थ सोहम्मीसाणहँ अच्छरयण सेविय गिव्वाणहँ।। अदु-अदु उप्परि अट्टइ पव्वेलिउ सुहु अहिउ पयट्टइ।। जे सव्वत्थसिद्धि तियसाहिब एक्कु हत्थु तहो मणहि जिणाहिव।। बारह जोयणेहिँ उप्परि ठिउ सिवपउ जहिँ सिद्धयणु परिट्ठिउ।। तहिँ मयसर बे हत्थ णिक्किलैं जाणेज्जहु अवरु वि उक्किट्ठे ।। पंचसयाइँ सरासइँ वुत्तई अंतर परिमाणाइँ बहुत्तइँ।। घत्ता- दो कप्प पहिल्लहिँ जे वसंति तियसेसरा। पढमावणि णरयहो ते णियंति जुइणेसरा।। 155 ।। 9/11 वैमानिक देवों की आयु एवं ऊँचाई का प्रमाणहे भव्यजनो, अब आगे भी सुनो- अगले दो (ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर) देवलोकों में दस, फिर अगले दो में चौदह, फिर क्रमशः दो-दो में सोलह, अठारह (दसका दुगुना) बीस एवं बाईस सागरोपम का आयुष्य माना है। इसमें ममत्व कभी नहीं करना चाहिए। अंतिम देवलोक में ज्योतिषियों की उत्कृष्ट आयु तेतीस सागर की बतलाई है। पुनः एक-एक करके वहाँ तक ऊपर बढ़ते जाना चाहिए जब तक कि 33 की गणना न आ जाय। केवलज्ञानियों के अनुसार वायुकुमार जाति के देवों का सुखकारी आयुष्य दो पल्योपम होता है। असरों के शरीर की ऊँचाई पच्चीस धनष प्रमाण जिनेन्द्र ने बतलाई है। व्यन्तर देवों की ऊँचाई दस धनष ज्योतिषी देवों की ऊँचाई सात धनुष, अप्सराओं द्वारा सेवित वैमानिक देवों में सौधर्म और ईशानवासी देवों की सात हाथ और सर्वार्थसिद्धि देवताओं की ऊँचाई एक हाथ मानी गई है। स्वर्गों में ऊपर जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाते हैं, वैसे ही वैसे अधिकाधिक सुखों की बृद्धि होती जाती है। सर्वार्थसिद्धि-विमान से बारह योजन ऊपर जाने से सिद्धशिला अर्थात् मोक्ष स्थल है जहाँ पर सिद्धों का निवास है। सिद्धों की ऊँचाई उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष प्रमाण कही गई है, कम से कम ऊँचाई एक धनुष दो हाथ प्रमाण जानना चाहिए, इनमें बहुत प्रकार के अंतर होते हैं। घत्ता- पहले दो स्वर्गों में रहने वाले देव अपने अवधिज्ञान से नीचे के प्रथम नरक तक को देख-जान सकते हैं। ।। 155।। पासणाहचरिउ :: 185
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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