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________________ 15 5 मज्झिमु पुणु झल्लरि सारिच्छउ उवर मुखया भासिउ एक्कु रज्जु अक्खिय णिव्वाणहो घत्ता— तहो लक्खिउ तक्खहिँ पंचाहिय चालीसहिँ । वित्रु महणाणें महजोयणहिँ रिसीसहिँ । । 145 || एक्कु रज्जु परिमाणउ णिच्छउ ।। रज्जुअ पंच पमाणु पयासिउ ।। विवरीयायवत्तद्ध संठाणहो ।। तिरिय लोय मज्झट्ठिउ सुरगिरि महजोयण सय सहस पमाणउ सुमझ जाणें पड तो तले सत्त णरय थिय भीसण पढमु रयणपहु पुणु सक्करपहु तुरियर पावबहुलु पंकप्पहु छट्ठउ दुक्ख-णिहाणु तमप्पहु 9/2 Divisions and description of Hell (Naraka). सहइ सया दरिसिय कंचणसिरि ।। णीसेसहँ धरिणीहर राणउ ।। एक्क-सहासु अहोगइ णिवडिउ ।। णार-नियर विभुक्कसुणीसण । । तिज्जर जाणिज्जइ बालुप्पहु ।। पंचमु धूमाउलु धूमप्पहु । । सत्तमु भणिउ तमाइँ तमप्पहु । । पाँच रज्जु प्रमाण है। उसके ऊपर मुख्य प्राकार कहा गया है, जो स्पष्ट उससे निर्वाण स्थल एक रज्जु प्रमाण कहा गया है, जिसका आकार आवर्त्त का विपरीत अर्ध माना गया है। उर्ध्व लोक मृदंगाकार है और उसका परिमाण पाँच रज्जु है। घत्ता- उसका विस्तार पैंतालिस लाख योजन कहा गया है। यहाँ विस्तार परिणाम महायोजनों से जाना जाता है। ऐसा ऋषीश्वरों ने अपने महाज्ञान से जानकर कहा है । ।। 145 ।। 176 :: पासणाहचरिउ 9/2 नरक - वर्णन तिर्यक् लोक के मध्य में सुमेरु पर्वत स्थित है, जो सदैव सुवर्ण की शोभा को दिखलाता हुआ सुशोभित होता है । वह एक लाख महायोजन प्रमाण है और समस्त पर्वतों का राजा । उसका अधोभाग एक सहस्र योजन है, जो जिनेन्द्र के ज्ञान में प्रकट है। उसके नीचे सात भीषण नरक स्थित हैं । वहाँ नारकियों के 'मारो मारो आदि कुत्तों के समान भोंकने वाले बुरे-बुरे शब्द ही सुनाई पड़ते हैं । उनके नाम प्रथम रत्नप्रभा दूसरा शर्कराप्रभा तथा तीसरा नरक बालुकाप्रभा के नाम से जानना चाहिए । चौथा पाप - बहुल पंकप्रभा, पाँचवाँ धूम से आकुल धूमप्रभा, छठा दुःखों का निधान तमप्रभा और सातवाँ घोरान्धकार से व्याप्त नरक तमस्तमप्रभा नाम का कहा गया है ।
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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