SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घत्ता- जय विणिवारिय चउगइगमण जय कलमराल लीलागमण। जय कोह दवाणलउवसमण जय जिणवरपास महासवण।। 142|| 8/11 King Swayambhū, the ruler of Hastināgapura renounces the world. वत्थु-छन्द- पुणु वि भत्तीए जिणु ससत्तीए। अइपयड महुरक्खरहिँ सुरवराण आणंदु दिंतउ। फेडंतु चिरविहियमलु तियसराउ जम्मफलु लिंतउ।। फुडु दरिसंतउ तियसवइ णियमुहकमलु पहिछु । उवविट्ठउ जिणवरपुरउ णिहिल सुहासि वरिट्ठ।। एत्थंतरे केणवि णरणाहहो हत्थिणायउर पालणसीलहो णिय परियण पच्चक्ख सयंभुहे पुरउ पयंपिउ सविणयवाणिए देव देउ दुरियारि विमद्दणु पासणाहु पासंङ पणासणु उप्पाइन वइरीयण दाहहो ।। कामिणियण मणमणरुहलीलहो।। कुलतिलयहो णामेण सयंभुहे।। हिमयर किरण सरिसगुणखाणिए।। पय पयरुह पाडिय सक्कंदणु।। विसहरवइ विरइय कमलासणु।। घत्ता- चारों गतियों के गमन का निवारण करने वाले हे देव, आपकी जय हो। कलहंस के समान मधुर लीलायुत गमन करने वाले हे देव, आपकी जय हो। क्रोधाग्नि का उपशम करने वाले हे देव, आपकी जय हो। हे महाश्रमण जिनवर पार्श्वनाथ, आपकी जय हो। 142 || 8/11 हस्तिनागपुर नरेश स्वयम्भू राजा को वैराग्य उत्पन्न हो जाता हैवस्तु-छन्द- इस प्रकार जिनेन्द्र की यथा-शक्ति भक्ति-स्तुति कर तथा अति प्रकट अर्थ वाले मधुराक्षरों से स्तवन कर सुरवरों को आनंद देता हुआ, चिर विहित कर्ममल को काटता हुआ, इन्द्रपद के जन्म का फल लेता हुआ, त्रिदशराज वह इन्द्र पुनः अपने हर्षित मुखकमल को स्पष्ट रूप में दिखलाता हुआ समस्त देवों में प्रधान वरिष्ठ उन जिनेन्द्र (पार्श्व) के सन्मुख एक कोठे (समवशरण के निर्धारित प्रकोष्ठ) में जा बैठा। (छ) इसी बीच बैरीजनों के मन में दाह उत्पन्न करने वाला, शील का पालन करने वाला, कामिनी-जनों के मन में काम उत्पन्न करने वाला, अपने परिजनों के लिये हस्तिनागपुर राज्य का प्रत्यक्ष ही स्वयम्भू प्रतिपालक, अपनी कुलपरम्परा के लिये तिलक स्वरूप, स्वयम्भू नामक राजा पार्श्वप्रभु के सम्मुख आया और हिमकर की शीतल किरणों के समान गुणों की खानि वाले उन पार्श्वप्रभु से अत्यन्त विनय पूर्वक बोला— हे देवाधिदेव, आप पापों का मर्दन करने वाले हैं, आपके चरण-कमलों में इन्द्र भी (अपना शीर्ष) झुकाता है। हे पार्श्वनाथ, आप पाखण्डों का विनाश करने वाले हो, धरणेन्द्र फणीश्वर ने आपके लिये कमलासन बनाया है, केवलज्ञान रूपी लक्ष्मी आपके द्वारा प्रसाधित 172 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy