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________________ 10 भत्ति-जुत्तु सीसु व पणवंतउ वेसयणु व सव्वत्थ रमंतउ।। पलयाहिवइ व भुवणु गिलंतउ अवरोप्परु सुहियणु व मिलंतउ।। कलहंसुज्झिउ किवण कलत्तु व बहु विसवंतउ विसहरगत्तु व।। कुलिस किरण विप्फुरिउ सुरिंदु व घडहडंतु दिसणियर करिंदु व।। जडसहाउ दोसयरु कुसीसु व गयपयाउ विहडिय धरणीसु व।। चारणमुणि व गयेण वियरंतउ जिणणाणु व दसदिसि पसरंतउ ।। घत्ता- बुहयणे वायरणु व वित्थरेवि वयणुब्मडसुहडु व उत्थरेवि। मेल्लिवि जल-बहल सिलीमुहइँ हउ गिंभु महारिउ दुम्मुहइँ।। 131।। 15 7/18 Serious disturbances from the heavy rains described वत्थु-छन्द - सहइ पाणिउं गयणे तुटुंतु। हारु व सुरकामिणिहिँ उल्ललंतु गिरि-सिहरि सीहु व। रहते हैं, उसी प्रकार वे मेघ-गण भी अविरल वर्षा कर रहे थे। जिस प्रकार मिथ्यात्वी साधु सुपथ को बिगाड़ते रहते हैं, उसी प्रकार वे मेघ भी सुपथों को बिगाड़े जा रहे थे, (अर्थात् वर्षा से मार्गों को काट रहे थे)। भक्ति युक्त शिष्य जिस प्रकार नतमस्तक रहते हैं, उसी प्रकार वे मेघ भी नीचे झुके जा रहे थे। जिस प्रकार वेश्या का मन सर्वत्र रमता है, उसी प्रकार वे मेघ भी समस्त दिशाओं में सुशोभित हो रहे थे। प्रलय कालीन समुद्र जिस प्रकार भुवन (आर्यखण्ड) को निगल जाता है, उसी प्रकार वे मेघ भी भुवन को (लोकों को) निगले जा रहे थे। सुधी जन जिस प्रकार परस्पर में मिलते हैं, उसी प्रकार वे मेघ भी परस्पर में मिल रहे थे। जैसे कृपण की नारी अपने प्यारे पति को छोड़ देती है, उसी प्रकार वे मेघ भी वर्षाजल छोड़ रहे थे। वे मेघ अत्यन्त विषैले विषधरों के समान शरीर वाले थे। जैसे इन्द्र बज की किरणों से चमकता रहता है, वैसे ही वे मेघ भी उल्का-किरणों से दमक रहे थे। जिस प्रकार दिग्गज धड़धड़ाते हुए घोर-गर्जना करते हैं, उसी प्रकार जलस्वभावी वे मेघ भी गरज रहे थे। जिस प्रकार, जडस्वभावी कुशिष्य दोषकारी होता है, उसी प्रकार वे मेघ भी अपने काले रंग के कारण रात्रि को काला कर रहे थे। जैसे गज के पाद से पर्वत गिरा दिया जाता है उसी प्रकार वे मेघ भी अपने मद-जल के प्रभाव से धरणी को विघटित कर रहे थे। जिस प्रकार चारण-मुनि गगन में विचरते हैं और जिनेन्द्र के ज्ञान का दशों दिशाओं में प्रचार करते हैं, ठीक उसी प्रकार वे मेघ भी गगन में विचर रहे थे। जिस प्रकार जिनेन्द्र का ज्ञान दशों-दिशाओं में फैलता है, वैसे ही वे मेघ भी दसों-दिशाओं में ध्वनि कर रहे थे। जिस प्रकार बुधजनों में व्याकरण का विस्तार होता है, वैसे ही उन मेघों का भी विस्तार हुआ। सुभट जिस प्रकार आदेशानुसार क्रिया करते हैं, ठीक उसी प्रकार वे मेघ भी अपूर्व क्रिया कर रहे थे। वे मेघ जगहजगह जलरूपी वाणों को सुभट के समान छोड़ रहे थे। (अधिक क्या कहा जाये) उन मेघों ने तो ग्रीष्म रूपी महा शत्रु के दुर्मुख को भी नष्ट कर दिया था। (131) 7/18 सजल मेघ का महा उपसर्गवस्तु-छन्द—आकाश में देवियों ने मेघ वर्षा-जल को ऐसे देखा मानों टूटे हुए मोतियों का हार ही बिखरकर सुशोभित हो रहा हो। पर्वत के शिखरों को सिंह जिस प्रकार गर्जना से भर देता है, ठीक उसी प्रकार वे मेघ भी 156:: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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