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________________ छुडु जिण-उवरि समावडिउ रयण सएण विमाणु। जिणवर-तव-तेयाहयउ थक्कउ ताम विमाणु ।। छ।। जह विवाहु कुल-लच्छि विहीणहो जह विग्गहु वाउहिँ खीणहो। जह कवित्तु कुकइहे जडबुद्धिहे जह विलासु वियलिय वररिद्धिहे ।। जह सूद धरणीयले किवणहो जह सत्थावबोहु अण्णमणहो।। जह मउ गोरिगीयलुद्धासउ जह परिवियलियरायहो हासउ।। जह सुणेहु बहुलोहाविट्ठहो जह पारद्ध कज्जु पाविठ्ठहो।। जह सुधाउ विरयण चिरपुरिसहो जह संभासणु विहियामरिसहो।। जह जसोहु कयसंगमुणिंदहो जह कर-णियर-पसरु दिणे चंदहो।। जह पुण्णज्जणु विसयासत्तहो जह वच्छल्लवयणु मयमत्त हो।। जह जणपोसणु णिव्वसायहो जह दुच्चरुचारित्तु सरायहो।। जह तीरिणि पवाहु रयणालए जह मुणि विहरणु वरिसायालए।। 10 घत्ता-णिण्णायणयरे ववहारु जह सविमाणु णिएविणु थक्कु तह। मणि मेहमालि असुराहिवइ केणेहु वियंभिउ चिंतवइ ।। 118 ।। रत्नों से जटिज असुरराज का वह विमान जब जिनेश्वर के ऊपर से उडा, तभी उनके तपस्तेज से आहत होकर वह विमान वहीं अवरुद्ध हो गया। जिस प्रकार कुल एवं लक्ष्मी विहीन का विवाह, जिस प्रकार वायुरोग से क्षीण पुरुष का विग्रह (शरीर), जिस प्रकार जड़बुद्धि कुकवि की कविता जिस प्रकार विगलित ऋद्धि वाले का वर-विलास, जिस प्रकार कृपण (कंजूस) का धरती में गड़ा हुआ विपुल द्रव्य, जिस प्रकार अन्यमनस्क का शास्त्र-ज्ञान, जिस प्रकार गोपियों के गीत-श्रवण में लुब्ध आशयवाला मृग, जिस प्रकार रागरहित का हास्य, जिस प्रकार बहुलोभाविष्ट का सुस्नेह, जिस प्रकार पापिष्ठ का प्रारब्ध-कार्य, जिस प्रकार चिर-स्थविर (वृद्ध-पुरुष) की उत्तम वीर्यादि धातुओं का निर्माण, जिस प्रकार क्रोधी का सम्भाषण, जिस प्रकार परिग्रहधारी साधु की संगति से यशपुंज, जिस प्रकार दिन में चन्द्रकिरणों का प्रसार, जिस प्रकार विषयासक्त का पुण्यार्जन, जिस प्रकार मदोन्मत्त (घमण्डी) की वात्सल्य पूर्ण वाणी, जिस प्रकार व्यवसायहीन व्यक्ति का जनपोषण, जिस प्रकार रागी साधु का दुश्चर चारित्र, जिस प्रकार रत्नालय (समुद्र) में नदी का प्रवाह और जिस प्रकार वर्षाकाल (चातुर्मास) में मुनियों का विहार तथा घत्ता- जिस प्रकार अन्यायपूर्ण नगरी में व्यवहार (विधि-विधान, न्याय) रुक जाता है, उसी प्रकार असुराधिपति मेघमाली ने अपने विमान को जब रुका हआ देखा, तब वह (क्रोधित होकर-) अपने मन में सोचने लगा कि- मेरा यह विमान रोका किसने है? (118) 138 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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