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अरलू-पूयप्फल-सिरिहिल्लइँ जासवण्ण-धव-धम्मण-फणिसइँ केयइ-कुरव-खइर-खज्जूर. पाडलि-सिंदूरी-मुचुकुंद पीलू-मयण-पक्ख-रुद्दक्खइँ उंबरि-कंदुबरि-वरणाय णालिएरि-गंगेरि-वडार
सल्लई-कोरंटिय-अंकोल्लइँ।। वंस-सिरीस-पियंगु-पलासइँ।। तिंदुअ-तिलय-वउल-कच्चूर ।। मज्झण्णिय मुणि महिरुह-कंद।। कंथारी-कणियारि-सुदक्खइँ।। चिंचिणि-चंदणक्क-पुण्णाय।। सेंबलि-वाण-वोर-महुबार।।
घत्ता—तहिँ मंडिय सयल धरायलए फासुअ सुविसाल सिलायलए।
थिउ तणु विसग्गु विरएवि मुणि णं गिरिवरिंदु वारिहरज्झुणि ।। 116 ।।
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Meghamālīn (Kamatha) the King of demons wandering sportingly flies over the Bhīmāțawi. वत्थु-छन्द- णिरहु णिरुवमु णिम्मलायारु
णिबंदु णिरसिय वसणु णिविसाउ णिप्पिहु णिरामउ। णिद्दोसु णिरवेक्ख णिद्दारहिउ णिहयमोह णीरागु णिम्मउ।। णियणासग्ग णिसिय णयणु णिरहंकार णिरोसु । णिज्जिय-मयणु णिराहरणु णिम्मच्छरु णिद्दोसु ।। छ।।
पूगीफल (सुपाडी), सिरिहिल्ल (गुंजा), सल्लकी, कोरंटक, अंकोल्ल, जासवण्ण (जसोन, चमेली), धव, धम्मन, फणिश (पनश), बाँस, शिरीष, प्रियंगु, पलाश (छेवला), केतकी, कुरवक, खदिर, खज्जूर, तिंदुक, तिलक, बकुल (मोरसली), कच्चूर (कदर), पाटल, सिन्दूरी, मुचुकुन्द, मध्याहिक दोपहरिया, मुनि (अगस्तिया), कन्द वृक्ष, पीलू, मदन, पलक्ष (पाखर), रुद्राक्ष, कन्धारी (कैंथ), गंगेरन, कर्णिकर (कनेर), सुद्राक्षा (किशमिस), ऊमर, कठूमर, वरनाक, चिंचणी (इमली) चन्दन, अर्क (आक), पुन्नाग, नारियल, गंगेर, बडार, सेम्बल (शाल्मलि), बाण, बोर (बेर), महुवार (महुआ) आदि
घत्ता- के वृक्षों से जहाँ का धरातल मण्डित था। वहाँ की एक प्राशुक विशाल शिला पर वे पार्श्व मुनि ___ कायोत्सर्ग-मुद्रा में स्थित हो गये। वे ऐसे प्रतीत हो रहे थे, मानों मेघ ध्वनि वाला गिरिवरीन्द्र—सुमेरु पर्वत
ही हों। (116)
7/3 असुराधिपति मेघमाली (कमठ) क्रीडा-विहार करता हुआ उस भीमाटवी-वन में आयावस्तु-छन्द- वे मुनीन्द्र निरघ (पापरहित), निरुपम, निर्मलाकार, निर्द्वन्द्व, निरवस्त्र, विषादरहित, निस्पृह, निरामय,
निरपेक्ष, निद्रारहित, निर्मोह, वीतराग, निर्मद अपनी नासाग्रपर स्थापित दृष्टिवाले, निरहंकार, रोषरहित, मदनजयी, निराभरण निर्मत्सर एवं दोष-रहित (होकर जब ध्यानस्थ) थे
136 :: पासणाहचरिउ