________________
महाकवि बुध श्रीधर (13वीं सदी) द्वारा रचित पौराणिक महाकाव्य, अपभ्रंश की एक अप्रतिम रचना। इसमें जैन शलाकापुरुष तीर्थंकर पार्श्वनाथ की कथावस्तु वर्णित है। कथानायक पार्श्वनाथ के नौ जन्मों- भवान्तरों की यह कथा उस विराट जीवन का चित्र प्रस्तुत करती है, जिसमें अनेक भवों के अर्जित संस्कार उनके तीर्थंकरत्व की उत्पत्ति में सहायक होते हैं। पार्श्वनाथ की भव-भवान्तर की ये घटनाएँ रहस्यमयी और आश्चर्य पैदा करने वाली तो हैं ही, इनके निरूपण की शैली भी इतनी प्रभावक है कि सहज ही में काव्य-नायक के जीवन का विराट चित्र प्रस्तुत हो जाता है। कथा-प्रवाह सुनियोजित है और महाकाव्य की दृष्टि से सांगोपांग भी। बुध श्रीधर मात्र कवि ही नहीं थे, वे मध्यकालीन श्रमण संस्कृति एवं भारतीय इतिहास के, विशेषकर दिल्ली के समकालीन तोमरवंशीय शासन एवं समाजव्यवस्था के साक्षी और प्रखर अध्येता थे। यही कारण ही कि 'पासणाहचरिउ' का इतिवृत्त भले ही पौराणिक है, लेकिन कवि ने रूपक का सहारा लेकर इसमें समकालीन ऐतिहासिक तथ्यों को महाकाव्य के विस्तृत फलक पर चित्रित कर इसे इतिहासपरक पौराणिक काव्य-रचना का रूप दे दिया है। प्राच्य विद्या जगत् के यशस्वी विद्वान डॉ. राजाराम जैन ने इस ग्रन्थ का श्रमसाध्य सम्पादन-अनुवाद किया है। साथ ही, विस्तृत एवं बहुआयामी प्रस्तावना लिखकर जिज्ञासु पाठकों के लिए उन्होंने इस ग्रन्थ की उपयोगिता बढ़ायी है। भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है कि उसे अपभ्रंश की एक और महान कृति के प्रकाशन का अवसर प्राप्त हुआ।