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लहइ थत्ति सो जा ण रहवरे ता हसति गयणे सुरासुरा
घत्ता - एत्थंतरे मण्णेवि णियमणेण एहु वाणासण वाणहिँ दुज्जउ । घाइउ कड्ढेवि करवालु लहु उग्गउ णाइँ सणिच्छरु विज्जउ || 79 ||
मुक्कलाल लोलंत हयवरे । सिरकिरीड किरणोलि भासुरा ।।
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King Ravikirti chivalrously slains Padmanatha, the vigourous enemy-General with all of his terrific warriors. दुवइ - तं पेक्खेवि सरोसु आवंतउ करयल-कय-किवाणओ I
रविकित्ति वि तुरंतु अब्मिडियउ तज्जिय चाव-वाणओ । । छ । ।
बेवि समच्छर
बेवि महाबल
बेवि भयंकर
बेवि गुणायर
बेवि महाभड
विविसुद्धा
बेविरुट्ठा बेवि पसिद्धा
इँ णिच्छर ।।
णं भीसम बल ।।
सुहड खयंकर ।।
सउल दिवायर ।।
हयकुंजर धड ।। जयसिरि लुद्धा || जममुह कुट्ठा ।। धण-कण- रिद्धा ।।
टपकाते हुए चंचल घोड़ों वाले रथ पर वह चढ़ भी न पाया था कि अपने सिर की किरीट - किरणावलि से भास्वर दिखने वाले सुर एवं असुर देव (उसकी पराजय देखकर) आकाश में ही हँस पड़े ।
पत्ता- इसी बीच में जब पद्मनाथ ने अपने मन में यह अनुभव कर लिया कि बाण-वर्षा में दुर्जेय रविकीर्ति को जीत पाना अत्यन्त कठिन है, तब उसने झपटकर करवाल को म्यान से निकाला और रविकीर्ति पर इस प्रकार टूट पड़ा, मानों उसके ऊपर शनीचर - ग्रह का ही उदय हो गया हो। (79)
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राजा रविकीर्ति द्वारा पद्मनाथ एवं उसके यवन - सुभटों का विनाश
द्विपदी
- राजा रविकीर्ति ने क्रोधित पद्मनाथ को कृपाण हाथ में लेकर जब आता हुआ देखा, तब रविकीर्ति भी अपना धनुष-बाण फेंककर तथा तलवार लेकर तुरन्त ही उससे आ भिड़ा ।
वे दोनों (रविकीर्ति एवं पद्मनाथ) उसी प्रकार मत्सर- गुण वाले थे, जैसे मानों (एक दूसरे के लिये) शनीचर - ग्रह ही हों (शनीचर - ग्रह कृष्ण वर्ण वाला माना गया है)। निर्भीक शक्ति सेना सम्पन्न वे दोनों ही भीषण महाबली थे। वे दोनों ही अत्यन्त भयंकर, प्रतिसुभटों का संहार करने वाले, दोनों ही गुणाकर, अपने-अपने कुलों के लिये दोनों ही दिवाकर के समान, दोनों ही महासुभट, दोनों ही महाकुंजरों के धड़ों को विदीर्ण कर डालने वाले, दोनों ही विशुद्ध, जयश्री के दोनों ही लोभी, दोनों ही अत्यन्त रुष्ट, दोनों ही यमराज के समान क्रोधित मुख वाले, दोनों ही प्रसिद्ध एवं धन-धान्य कणों से समृद्ध, दोनों ही सुन्दर, तथा जयलक्ष्मी का हरण करने वाले, दोनों ही सुन्दर केश धारी तथा
पासणाहचरिउ :: 91