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पार्श्व प्रभु चतुर्विध संघ सहित विहार करते हुए आगम सूत्रों का अर्थ समझाते हुए गिरिराज सम्मेदाचल पर पहुँचे' । भगवान् पार्श्व के गणधर
महाकवि बुध श्रीधर ने पार्श्व के गणधरों की संख्या 10 (दस) बतलाई है, जिनमें स्वयम्भू प्रथम गणधर थे। अन्य के नामोल्लेख नहीं किये। महाकवि पउमकित्ति ने पार्श्व के गणधरों की संख्या का निर्देश नहीं किया है। किन्तु प्रथम गणधर का नाम स्वयंभू ही बतलाया हैं। स्थानांग में पार्श्व के 8 गणधरों की संख्या तथा उनके नामों का उल्लेख है।' कल्पसूत्र में स्थानांग का ही अनुसरण किया गया है। तिलोयपण्णत्ती' तथा आवश्यक - नियुक्ति' में पार्श्व के दस गणधरों के उल्लेख हैं । यही संख्या आज समस्त परवर्त्ती ग्रन्थकारों को भी मान्य है । किन्तु उनके नामों के विषय में मतभेद हैं । तिलोयपण्णत्ती आदि में पार्श्व के प्रथम गणधर का नाम जहाँ स्वयंभू बताया गया है, वहीं देवभद्रसूरि कृत सिरिपासणाहचरियं में उसका नाम आर्यदत्त' बतलाया गया हैं
पार्श्व का चतुर्विध संघ
भगवान पार्श्व के चतुर्विध- संघ में मुनि, आर्यिका श्रावक एवं श्राविका की जो संख्या भिन्न-भिन्न ग्रन्थों में निर्दिष्ट है, उसका एक तुलनात्मक मानचित्र निम्न प्रकार है :
तिलोयपण्णत्ती
त्रिगुप्ति गुप्त साधु सभी प्रकार के तपस्वी
मन:पर्यय-ज्ञानी, ध्यानी, मुनीन्द्र
5.
6.
7.
8.
पूर्वधर
शिक्षक
अवधिज्ञानी
केवली
विक्रियाधरी
वादीन्द्र
आयिकाएँ
श्रावक
श्राविकाएँ
12. पासणाह. ( बुध) 8/12/6
3. पासणाह. (पउम.) 15/12/5
4.
स्थानांग 8/784, यथा—
कल्पसूत्र 160
तिलोय. 4 / 966
आवश्यक. 290
सिरि पासणा. 5/46
1900
350
10900
1400
10000
1000
600
38000
100000
27000
पा.चा. बुध श्रीधर कल्पसूत्र | आवश्यक-निर्युक्ति
1090
900
400
1800
1500
1500
1500
800
38000
10000
300000
सुभे य अज्जघोसे य वसिट्ठे बंभयारि य। सोमे सिरिहरे चेव वीरभद्दे जसेवि य ।।
350
1400
10000
1100
600
165000
300000
38000
प्रस्तावना :: 15